महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 151 श्लोक 59-71
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एकपञ्चाशदधिकततम (151) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)
राजा युधिष्ठिरने जो कोई भी सेना सारहीन, कृशकाय अथवा दुर्बल थी, सबकों एवं अन्य परिचारकोंको उपद्रव्य में एकत्र करके वहाँसे प्रस्थान कर दिया। पाञ्चालराजकुमारी सत्यवादिनी द्रौपदी दास-दासियों से घिरी हुई कुछ दूरतक महाराजके साथ गयी। फिर सभी स्त्रियों के साथ उपप्लब्य नगर में लौट आयी । पाण्डवलोग दुर्गकी रक्षा के लिये आवश्यक स्थावर (परकोटे और खाई आदि) तथा जंगम ( पहरेदार सैनिकोंकी नियुक्ति आदि) उपायों द्वारा स्त्रियों और धन आदिकी सुरक्षा की समुचित व्यवस्था करके बहुत से खेमे ओर तम्बू आदि साथ लेकर प्रस्थित हुए ॥६१॥ राजन् ! ब्राह्रमण्लोग चारों ओरसे घेरकर पाण्डवों के गुण गाते ओर पाण्डवलोग उन्हें गोओं तथा सुवर्ग आदिका दान देते थे। इस प्रकार वे मणिभूषित रथोंपर बैठकर यात्रा कर रहे थे ॥६२॥ (पाँचों भाई) केकयराजकुमार, धृष्टकेतु, काशिराजके पुत्र अभिभू, श्रेणिमान्, वसुदान और अपराजित वीर शिख्ण्डी—से सब लोग आभूष्ण और कवच धारण करके हाथों में शस्त्र लिये हर्ष और उल्लासमें भरकर राजा युधिष्ठिर को सब ओरसे घेरकर उनके साथ-साथ जा रहे थे ।सेनाके पिछले आधे भागमें राजा विराट, सोमकवंशी द्रुपदकुमार ध्रष्टद्युम्न, सुधर्मा, कुन्तिभोज और ध्रष्टद्युम्न के पुत्र जा रहे थे। इनके साथ चालीस हजार रथ, दो लाख घोडे, चार लाख पैदल और साठ हजार हाथी थे ।अनावृष्टि, चेकिस्तान, ध्रष्टकेतु तथा सात्यकि- ये सब लोग भगवान् श्रीक्रष्ण और अर्जुनको घेरकर चल रहे थे । इस प्रकार सेनाकी व्यूहरचना करके प्रहार करनेके लिये उद्यत हुए पाण्डवसैनिक कुरूक्षेत्रमें पहुँचकर साँडोके समान गर्जन करते हुए दिखायी देने लगे । उन शत्रुदमन वीरोंने कुरूक्षेत्र की सीमामें पहुँचकर अपने-अपने शंख बजाये। इसी प्रकार श्रीक्रष्ण और अर्जुनने भी शंखध्वनि की ।बिजली की गडगडाहटके समान पाञ्चजन्यका गम्भीर घोष सुनकर सब ओर फैले हुए समस्त पाण्डव-सैनिक हर्षसे उल्लसित एवं रोमांचित हो उठे । शंख और दुन्दुभियोंकी ध्वनिसे मिला हुआ बेगवान् वीरोंका सिंहनाद पृथ्वी, आकाश तथा समुद्रों तक फैलकर उस सबको प्रतिध्वनित करने लगा ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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