महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 153 श्लोक 21-27
त्रिपञ्चाशदधिकततम (153) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)
श्रेष्ठ रथी अपने रथों को, अश्व संचालन की कला में कुशल योद्धा घोडों को और हस्तशिक्षा में निपुण सैनिक हाथियों को सुसज्जित करने लगे ।उन्होंने सोने के बने हुए बहुत से विचित्र कवच तथा सब प्रकार के विभिन्न अनेक अस्त्र-शस्त्र धारण कर लिये । पैदल योद्धाओं ने भी अपने अंगों में सुवर्णजटित कवच तथा भाँति-भाँति के अनेक अस्त्र-शस्त्र धारण कर लिये।जनमेजय ! दुर्योधन का वह हस्तिनापुर नगर मानो वहाँ कोई उत्सव हो रहा हो, इस प्रकार समृद्ध और हर्षोत्फुल्ल मनुष्यों से भर गया था, इससे वहाँ बडी हलचल मच गयी थी ।राजन ! जैसे चन्द्रोदयकाल में समुद्र उत्ताल तरगों से व्याप्त हो जाता है, उसी प्रकार के उदय से अत्यन्त उल्लासित दिखायी देने लगा। सब ओर घूमता हुआ जनसमुदाय ही वहाँ जल में उठने वाली भँवरों के समान जान पड़ता था। रथ, हाथी ओर घोडे़ उसमें मछली के समान प्रतीत होते थे। शंख और दुन्दुभियों की ध्वनि ही उस कुरूराजरूपी समुद्र की गर्जना थी। खजानों का संग्रह ही रत्नराशि का प्रतिनिधित्व कर रहा था। योद्धाओं के विचित्र आभूषण और कवच ही उस समुद्र की उठती हुई तरंगों के समान जान पड़ते थे। चमकीले शस्त्र ही निर्मल फेन से प्रतीत होते थे। महलों की पंक्तियाँ ही तटवर्ती पर्वत सी जान पड़ती थी। सड़कों पर स्थित दुकानें ही मानों गुफाएँ थीं ।
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