महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 188 श्लोक 1-20
अष्टाशीत्यधिकशततम (188) अध्याय: उद्योग पर्व (अम्बोपाख्यान पर्व)
अम्बा का राजा द्रुपद के यहां कन्या के रूप में जन्म, राजा तथा रानी का उसे पुत्र रूप में प्रसिद्ध करके उसका नाम शिखण्डी रखना
दुर्योधन ने पूछा- समरश्रेष्ठ गङ्गानन्दन पितामह! शिखण्डी पहले कन्यारूप में उत्पन्न होकर फिर पुरूष कैसे हो गया, यह मुझे बताइये । भीष्म ने कहा- प्रजापालक राजेन्द्र! राजा द्रुपद की प्यारी पटरानी के कोई पुत्र नहीं था ।महाराज! इसी समय भूपाल द्रुपद ने संतान की प्राप्ति के लिये भगवान् शंकर को संतुष्ट किया । हम लोगों के वध के लिये पुत्र पाने का निश्चित संकल्प लेकर उन्होंने यह कहते हुए घोर तपस्या की थी कि ‘महादेव! मुझे कन्या नहीं, पुत्र प्राप्त हो। भगवन्! मैं भीष्म से बदला लेने के लिये पुत्र चाहता हुं।’ यह सुनकर देवाधिदेव महोदेवजी ने कहा- ‘भूपाल! तुम्हें पहले कन्या प्राप्त होगी, फिर वही पुरूष हो जायगी। अब तुम लौटो। मैंने जो कहा है वह कभी मिथ्या नहीं हो सकता’ । तब राजा द्रुपद नगर को लौट गये और अपनी पत्नी से इस प्रकार बोले- ‘देवि! मैंने बड़ा प्रसन्न किया। तपस्या के द्वारा महादेवजी की आराधना की। तब भगवान् शंकर ने प्रसन्न होकर कहा- पहले तुम्हें पुत्री होगी; फिर वहीं पुत्र के रूप में परिणत हो जायगी। मैंने बार-बार केवल पुत्र के लिये याचना की; परंतु भगवान् शिव ने इसे दैव का विधान बताया है ओर कहा- ‘यह बदल नहीं सकता। जो कहा गया है, वहीं होगा’ ।तदनन्तर द्रुपदराज की मनस्विनी पत्नी की नियमपूर्वक रहकर द्रुपद के साथ संयोग किया। शास्त्रीय विधि से गर्भाधान संस्कार होने पर यथासमय उसने गर्भ धारण किया। राजन्! जैसा कि मुझसे नारदजी ने कहा था। द्रुपद की कमलनयनी रानी ने इसी प्रकार गर्भ धारण किया । कुरूनन्दन! महाबाहु द्रुपद ने भावी पुत्र के प्रति स्नेह होने के कारण अपनी प्यारी पत्नी को बडे़ सुख से रक्खा। उसका आदर-सत्कार किया। कुरूकुलरत्न! रानी को जिन-जिन वस्तुओं की इच्छा हुई, वे सब उनके सामने प्रस्तुत की गयीं । नरेश्वर! पुत्रहीन राजा द्रुपद की उस महारानी ने समय आने पर एक परम सुन्दरी कन्या को जन्म दिया । राजेन्द्र! तब पुत्रहीन राजा द्रुपद की मनस्विनी रानी ने यह धोषणा करा दी कि यह मेरा पुत्र हैं । नरेन्द्र! इसके बाद राजा द्रुपद ने छिपाकर रक्खी हुई उस कन्या के सभी संस्कार पुत्र के ही समान कराये। द्रुपद की रानी ने सब प्रकार का प्रयत्न करके इस रहस्य को गुप्त रखने की व्यवस्था की। वह उस कन्या को पुत्रकहकर ही पुकारती थी। सारे नगर में केवल द्रुपद को छोड़कर दूसरा कोई नहीं जानता था कि वह कन्या है । जिनका तेज कभी क्षीण नहीं होता, उन महादेवजी के वचनों पर श्रद्धा रखने के कारण राजा द्रुपद ने उसके कन्या-भाव को छिपाया और पुत्र होने की धोषणा कर दी । राजा ने बालक के सम्पूर्ण जातकर्म पुत्रोचित विधान से ही करवाये, लोग उसे ‘शिखण्डी’ के नाम से जानते थे । केवल मैं गुप्तचर के दिये हुए समाचार से, नारदजी के कथन से, महादेवजी के वरदान-वाक्य से तथा अम्बा की तपस्या से शिखण्डी के कन्या होने का वृत्तान्त जान गया था ।
« पीछे | आगे » |