महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 189 श्लोक 1-23
एकोननवत्यधिकशततम (189) अध्याय: उद्योग पर्व (अम्बोपाख्यान पर्व)
शिखण्डी का विवाह तथा उसके स्त्री होने का समाचार पाकर उसके श्र्वशुर दशार्णराज का महान् कोप
भीष्म कहते हैं- तदनन्तर द्रुपद ने अपनी पुत्री को लेखनशिक्षाऔर शिल्यशिक्षा आदि सभी कार्यों की योग्यता प्राप्त कराने के लिये विशेष प्रयत्न किया । राजेन्द! धनुर्विद्या के लिये शिखण्डी द्रोणाचार्य का शिष्य हुआ। महाराज! शिखण्डी की सुन्दरी माता ने राजा द्रुपद को प्रेरित किया कि वे उसके पुत्र के लिये बहू ला दें। वह अपनी कन्या का पुत्र के समान ब्याह करना चाहती थी। द्रुपद ने देखा, मेरी बेटी जवान हो गयी तो भी अब तक स्त्री ही बनी हुई है (वरदान के अनुसार पुरूष नहीं हो सकी), इससे पत्नीसहित उनके मन में बड़ी चिन्ता हुई । द्रुपद बोले- देवि! मेरी यह कन्या युवावस्था को प्राप्त होकर मेरा शोक बढा़ रही है। मैंने भगवान् शंकर के कथन पर विश्वास करके अब तक इसके कन्याभाव को छिपा रक्खा था । रानी ने कहा- महाराज! भगवान् शिव का दिया हुआ वर किसी तरह मिथ्या नहीं होगा। भला, तीनों लोको की सृष्टि करने वाले भगवान् झूठी बात कैसे कह सकते हैं? राजन्! यदि आपको अच्छा लगे तो कहूं। मेरी बात सुनिये। पृषतनन्दन! इसे सुनकर अपनी बुद्धि के अनुसार ग्रहण करें । मेरा तो यह दृढ़ विश्वास है कि भगवान् का वचन सत्य होगा। अत: आप प्रयत्नपूर्वक शास्त्रीय विधि के अनुसार इसका कन्या के साथ विवाह कर दें । इस प्रकार विवाह का निश्चय करके दोनों पति-पत्नी ने दशार्णराज की पुत्री का अपने पुत्र के लिये वरण किया ।तदनन्तर राजाओं में श्रेष्ठ द्रुपद ने समस्त राजाओं के कुल आदि का परिचय सुनकर दशार्णराज की ही पुत्री का शिखण्डी के लिये वरण किया । दशार्णदेश के राजा का नाम हिरण्यवर्मा था। भूपाल हिरण्यवर्मा ने शिखण्डी को अपनी कन्या दे दी । दशार्णदेश का वह राजा हिरण्यवर्मा महान् दुर्जय और दुर्धर्ष वीर था। उसके पास विशाल सेना थी। साथ ही उसका हृदय भी विशाल था नृपश्रेष्ठ! हिरण्यवर्मा की पुत्री भी युवावस्था को प्राप्त थी। इधर द्रुपद की कन्या शिखण्डिनी भी पूर्ण युवती हो गयी थी। विवाहकार्य सम्पन्न हो जाने पर पत्नीसहित शिखण्डी पुन: काम्पिल्य नगर में आया। दशार्णराज की कन्या ने कुछ ही दिनों में यह समझ लिया कि शिखण्डी तो स्त्री हैं । हिरण्यवर्मा की पुत्री ने शिखण्डी के यथार्थ स्वरूप को जानकर अपनी धाय तथा सखियों से लजाते-लजाते यह गुप्त बात कह दी कि पाञ्चालराज के पुत्र शिखण्डी वास्तव में पुरूष नहीं, स्त्री हैं । नृपश्रेष्ठ! यह सुनकर दशार्णराज की धायों को बड़ा दु:ख हुआ। उन्होंने यह समाचार सूचित करने के लिये बहुत-सी दासियों को दशार्णराज के यहां भेजा ।वे सब दासियां दशार्णराज से सब बातें ठीक-ठीक बताती हुई बोली कि ‘राजा द्रुपद ने बहुत बड़ा धोखा दिया है।’ यह सुनकर दशार्णराज अत्यन्त कुपित हो उठे। महाराज! शिखण्डी भी उस राजपरिवार में पुरूष की ही भांति आनन्दपूर्वक घूमता-फिरता था। उसे अपना स्त्रीत्व अच्छा नहीं लगता था । भरतश्रेष्ठ! राजेन्द्र! तदनन्तर कुछ दिनों में उसके स्त्री होने का समाचार सुनकर हिरण्यवर्मा क्रोध से पीड़ित हो गया । तदनन्तर दशार्णराज ने दु:सह क्रोध से युक्त हो राजा द्रुपद के दरबार में दूत भेजा । हिरण्यवर्मा का वह दूत द्रुपद के पास पहुंचकर अकेला एकान्त में सबको हटाकर केवल राजा से इस प्रकार बोला- ।‘निष्पाप नरेश! आपने दशार्णराज को धोखा दिया है। आपके द्वारा किये गये अपमान से उनका क्रोध बहुत बढ़ गया है। उन्होंने आपसे कहने के लिये यह संदेश भेजा है । ‘नरेश्वर! तुमने जो मेरा अपमान किया है, वह निश्चय ही तुम्हारे खोटे विचार का परिचय हैं। तुमने मोहवश अपनी पुत्री के लिये मेरी पुत्री का वरण किया था। दुर्मते! उस ठगी और वञ्चनाका फल अब तुम्हें शीघ्र ही प्राप्त होगा, धीरज रक्खो। मैं अभी सेवकों और मन्त्रियोंसहित तुम्हें जड़मूलसहित उखाड़ फेकता हुं’।
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