महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 38 श्लोक 34-47
अष्टात्रिंश (38) अध्याय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)
भारत! मूर्ख मनुष्य विद्या, शील, अवस्था, बुद्धि, धन और कुल में बडे़ माननीय पुरूषों का सदा अनादर किया करता हैं। जिसका चरित्र निन्दनीय है, जो मूर्ख, गुणों में दोष देखने वाला, अधार्मिक, बुरे वचन बोलने वाला और क्रोधी है, उसके ऊपर शीघ्र ही अनर्थ (संकट) टूट पड़ते हैं। ठगी न करना, दान देना, प्रतिज्ञा का उल्लघंन न करना और अच्छी तरह कही हुई बात- ये सब सम्पूर्ण भूतों को अपना बना लेते हैं। किसी को भी धोखा न देने वाला, चतुर, कृतज्ञ, बुद्धिमान् और कोमल स्वभाव वाला राजा खजाना समाप्त हो जाने पर भी सहायकों को पा जाता है अर्थात् उसे सहायक मिल जाते हैं। धैर्य, मनोनिग्रह, इन्द्रियसंयम, पवित्रता, दया, कोमल वाणी और मित्र से द्रोह न करना- ये सात बातें लक्ष्मी को बढा़ने वाली हैं। राजन्! जो अपने आश्रितों में धन का ठीक-ठीक बंटवारा नहीं करता तथा जो दुष्ट स्वभाव वाला, कृतघ्न और निर्लज है, ऐसा राजा इस लोक में त्याग देने योग्य हैं। जो स्वयं दोषी होकर भी निर्दोंष आत्मीय व्यक्ति को कुपित करता है, वह सर्पयुक्त घर में रहने वाले मनुष्य की भांति रात में सुख से नहीं सो सकता। भारत! जिनके ऊपर दोषारोपण करने से योग-क्षेम में बाधा आती हो, उन लोगों को देवता की भांति सदा प्रसन्न रखना चाहिये। जो धन आदि पदार्थ स्त्री, प्रमादी, पतित और नीच पुरूषों के हाथ में सौंप दिये जाते हैं, वे संशय में पड़ जाते हैं। राजन्! जहां का शासन स्त्री, जुआरी और बालक के हाथ में होता है, वहां के लोग नदी में पत्थर की नाव पर बैठने वालों की भांति विवश होकर विपत्ति के समुद्र में डूब जाते हैं। भारत! जो लोग जितना आवश्यक हैं, उतने ही काम में लगे रहते हैं, अधिक में हाथ नहीं डालते,उन्हें मैं पण्डित मानता हूं; क्योंकि अधिक में हाथ डालना संघर्ष का कारण होता हैं। (केवल) जुआरी जिसकी प्रशंसा करते हैं, नर्वक जिसकी प्रशंसा का गान करते हैं और वेश्याएं जिसकी बड़ाई किया करती हैं, वह मनुष्य जीता ही मुर्दे के समान है। भारत! आपने उन महान् धनुर्धर और अत्यन्त तेजस्वी पाण्ड़वों को छोड़कर यह महान् ऐश्र्वर्य का भार दुर्योंधन के ऊपर रख दिया हैं। इसलिये आप शीघ्र ही उस ऐश्र्वर्य मद से मूढ दुर्योधन को त्रिभुवन के साम्राज्य से गिरे हुए बलि की भांति इस राज्य से भ्रष्ट होते देखियेगा।
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