महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 55 श्लोक 19-36
पञ्चपञ्चाशत्तम (55) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)
‘हममें से एक-एक वीर भी समस्त राजाओं को जीतने-की शक्ति रखता है। शत्रुलोग आवें तो सही, हम अपने पैने बाणों से उनका धमंड चूर-चूर कर देंगे। भारत! पहले की बात है, अपने पिता शांतनुकी मूत्यु के पश्चात् भीष्मजी ने किसी समय अत्यंत क्रोध में भर-कर एकमात्र रथ की सहायता से अकेले ही सब राजाओं को जीत लिया था। रोष में भरे हुए कुरूश्रेष्ठ भीष्म ने जब उनमें से बहुत-से राजाओं को मार डाला,तब वे डर के मार पुन: इन्हीं देवव्रत (भीष्म) की शरण में आये। भरतश्रेष्ठ ! वे ही पूर्ण सामर्थ्यशाली भीष्म युद्ध में शत्रुओं को जीतने के लिये हमारे साथ हैं, अत: आपका भय दूर हो जाने चाहिये। इन अमिततेजस्वी भीष्म आदि ने उसी समय युद्ध में हमारा साथ देने का दृढ़ निश्र्चय कर लिया था। पहले यह सारी पृथ्वी हमारे शत्रुओं के काबू में थी, किंतु अब हमारे हाथ में आ गयी है। हमारे ये शत्रु अब हमें युद्ध में जीतने की शक्ति नहीं रखते। सहायकों के अभाव में पाण्डव पंख कटे हुए पक्षी के समान असहाय एवं पराक्रमशून्य हो गये हैं। भरतश्रेष्ठ ! इस समय यह पृथ्वी हमारे अधिकार में है। हमने जिन राजाओं को यहां बुलाया है, ये सब सुख और दु:ख में भी हमारे साथ एक-सा प्रयोजन रखते हैं-हमारे सुख-दु:ख को अपना ही सुख-दु:ख मानते हैं। शत्रुओं की मिथ्या प्रशंसा सुनकर पागल-से हो उठै हैं और दुखी एवं भयभीत होकर नाना प्रकार से विलाप कर रहे हैं।
यह सब देखकर ये राजालोग यहां हंस रहे हैं। इन राजाओं में से प्रत्येक अपने-आपको पाण्डवों के साथ युद्ध करने समर्थ मानता है; अत: आपके मन में जो भय आ गया है, वह निकल जाना चाहिये। मेरी सम्पूर्ण सेना को इन्द्र भी नहीं जीत सकते। स्वयम्भू ब्रह्माजी भी इसका नाश नहीं कर सकते। प्रभो! युधिष्ठिर तो मेरी सेना तथा प्रभाव से इतने डर गये हैं कि राजधानी या नगर लेने की बात छोड़कर अब पांच गांव मांगने लगे हैं। भारत! आप जो कुंतीकुमार भीम को बहुत शक्तिशाली मान रहे हैं, वह भी मिथ्या ही है; क्योंकि आप मेरे प्रभाव को पूर्ण रूप से नहीं जानते हैं। गदायुद्ध में मेरी समानता करने वाला इस पृथ्वी पर न तो कोई है, न भूतकाल में कोई हुआ था और न भविष्य में ही कोई होगा। गदायुद्ध का मेरा अभ्यास बहुत अच्छा है। मैंने गुरू के समीप क्लेशसहनपूर्वक रहकर अस्त्रविद्या सीखी है और उसमें मैं परङ्गत हो गया हूं। अत: भीमसेन से या दूसरे योद्धाओंसे मुझे कभी कोई भय नहीं है। आपका कल्याण हो। बलराम जी का भी यही निश्र्चय है कि गदायुद्ध में दुर्योधन के समान दूसरा कोई नहीं है। यह बात उन्होंने उस समय कही थी, जब मैं उनके पास रहकर गदा की शिक्षा ले रहा था। मैं युद्ध में बलराम जी के समान हूं और बल में इस भूतलपर सबसे बढ़कर हूं। युद्ध में भीमसेन मेरी गदा का प्रहार कभी नहीं सह सकते। महाराज! मैं रोष में भरकर भीमसेन पर गदा का जो एक बार प्रहार करूंगा, वह अत्यंत भयंकर एक ही आघात उन्हें शीघ्र ही यमलोक पहुंचा देगा।
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