महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 55 श्लोक 37-54

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पञ्चपञ्चाशत्‍तम (55) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: पञ्चपञ्चाशत्‍तम अध्याय: श्लोक 37-54 का हिन्दी अनुवाद

राजन्! मैं चाहता हूं कि युद्ध में गदा हाथ में लिये हुए भीमसेन को अपने सामने देखूं।मैंने दीर्घकाल से अपने मनमें सदा इसी मनोरथ के सिद्ध होने की इच्‍छा रखी है। युद्ध में मेरी गदा से आहत हुए कुंतीपुत्र भीमसेन का शरीर छिन्‍न-भिन्‍न हो जायगा और वे प्राणशून्‍य होकर पृथ्‍वी पर पड़ जायेंगे। यदि मैं एक बार अपनी गदा का आघात कर दूं तो हिमालय पर्वत भी लाखों टुकड़ों में वीदीर्ण हो जायगा। भीमसेन भी इस बात को जानते हैं। श्रीकृष्‍ण और अर्जुन को भी यह ज्ञात है। यह निश्रि्चत है कि गदायुद्ध में दुर्योधन के समान दूसरा कोई नहीं है। अत: राजन्! भीमसेन से जो आपको भय हो रहा हैं, वह दूर हो जाना चाहिये। मैं महायुद्ध में उन्‍हें मार गिराऊंगा। इसलिये आप मन में खेद न करें भरतश्रेष्‍ठ! मेरे द्वारा भीमसेन के मारे जाने पर (हमारे पक्षके) बहुतसे रथी जो अर्जुन के समान या उनसे भी बढ़कर है, उनके ऊपर शीघ्रतापूर्वक बाणों की वर्षा करने लगेंगे। भारत! भीष्‍म, द्रोण, कृप, अश्र्वत्‍थामा, कर्ण, भूरिश्रवा, प्राग्‍ज्‍योतिनरेश भगदत्‍त, मद्रराज शल्‍य तथा सिंधुराज जयद्रथ-इनमें से एक-एक वीर समस्‍त पाण्‍डवों को मारने की शक्ति रखता है। यदि ये सब एक साथ मिल जायं तो क्षण-भरमें उन सबको यमलोक पहुंचा देंगे। राजाओं की समस्‍त सेना एकमात्र अर्जुन को परास्‍त करने-में असमर्थ कैसे होगी? इसके लिये कोई कारण नहीं है।
भीष्‍म, द्रोणाचार्य, अश्र्वत्‍थामा तथा कृपाचार्य के चलाये हुए सैकड़ों बाण-समूहों से विद्व होकर कुंतीपुत्र अर्जुन को विवशतापूर्वक यमलोक में जाना पड़ेगा। भरतनंदन! हमारे पितामह गङ्गापुत्र भीष्‍मजी तो अपने पिता शांतनुसे भी बढ़कर पराक्रमी हैं। ये ब्रह्मर्षियों-के समान प्रभाव से सम्‍पन्‍न होकर उत्‍पन्‍न हुए हैं। इनका वेग देवताओं के लिये भी अत्‍यंत दु:सह है। राजन्! भीष्‍मजी को मारनेवाला तो कोई है ही नहीं; क्‍योंकि उनके पिता ने प्रसन्‍न होकर उन्‍हें यह वरदान दिया है कि तुम अपनी इच्‍छा के बिना नहीं मरोगे ।।४७।। दूसरे वीर आचार्य द्रोण हैं, जो ब्रह्मर्षि भरद्वाज के वीर्य से कलश में उत्‍पन्‍न हुए हैं। महाराज! इन्‍ही आचार्य द्रोण से वीर अश्र्वत्‍थामा की उत्‍पत्ति हुई है, जो अस्‍त्रविद्या के बहुत बड़े पण्डित हैं। आचार्यों में प्रधान कृप भी महर्षि गौतम के अंश से सरकण्‍डों के समूह में उत्‍पन्‍न हुए हैं। ये श्रीमान् आचार्यपाद अवध्‍य हें, ऐसा मेरा विश्र्वास है। महाराज! अश्र्वत्‍थामा के ये पिता, माता और मामा तीनो ही अयोनिज हैं। अश्र्वत्‍थामा भी शूरवीर एवं मेरे पक्ष में स्थित हैं। राजन्! ये सभी योद्धा देवताओं के समान पराक्रमी एवं महारथी हैं। भरतश्रेष्‍ठ! ये चारों वीर युद्ध में देवराज इन्‍द्र को भी पीड़ा दे सकते हैं।अर्जुन तो इनमें से किसी एक की ओर भी आंख उठाकर देख नहीं सकते। ये नरश्रेष्‍ठ जब एक साथ होकर युद्ध करेंगे, तब अर्जुन-को अवश्‍य मार डालेंगे। भीष्‍म, द्रोण और कृप-इन तीनों के समान पराक्रमी तो अकेला कर्ण ही है, यह मेरी मान्‍यता है। भारत! परशुरामजी ने कर्ण को (शिक्षा देने के पश्र्चात् घर लौटने की) आज्ञा देते हुए यह कहा था कि तुम (अस्‍त्र-शस्‍त्रों के ज्ञान में) मेरे समान हो। इसके सिवा कर्ण को जन्‍म के साथ ही दो सुंदर और कल्‍याणकारी कुण्डल प्राप्‍त हुए थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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