महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 63 श्लोक 18-24

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त्रिषष्टितम (63) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: त्रिषष्टितम अध्याय: श्लोक 18-24 का हिन्दी अनुवाद

जो सदाचारी, शीलवान्, प्रसन्‍नचीत्‍त तथा आत्‍म्‍ज्ञानी विद्वान् है वह इस जगत् में सम्‍मान पाकर मूत्‍यु के पश्र्चात् उत्‍तम गति का भागी होता है । जिस समस्‍त प्राणियों से निर्भयता प्राप्‍त हो गयी हो तथा जिससे सभी प्राणियों का भय दूर हो गया हो, वह परिपक्‍व बुद्धिवाला पुरूष मनुष्‍यों में श्रेष्‍ठ कहा गया है। जो सम्‍पूर्ण भूतों का हित चाहने वाला ओर सबके प्रति मेत्रीभाव रखने वाला है, उससे किसी भी पुरूष को उद्वेग नहीं प्राप्‍त होता है। जो समुद्र के समान गम्‍भीर एवं उत्‍कृष्‍ट ज्ञानरूपी अमृत से तृप्‍त है, वही परम शांतिका भागी होता है। जो कर्तव्‍य कर्मोद्वारा आचरित है तथा पहले साधुपुरूषों-के द्वारा जिसका आचरण किया गया है, उसे अपनाकर शमदमसे सम्‍पन्‍न पुरूष सदा आनन्‍दमग्‍न रहते हैं। अथवा जो ज्ञान से तृप्‍त जितेन्द्रिय पुरूष नैष्‍कर्म्‍य का आश्रय लेकर काल की प्रतीक्षा करता हुआ अनासक्‍त भावसे लोक में विचरता रहता है, वह ब्रह्मभाव को प्राप्‍त होने में समर्थ होता है। जैसे आकाश में पक्षियों के चरणचिन्‍ह् नहीं दिखायी देते हैं, वैसे ही ज्ञानानंद से तृप्‍त मुनिका मार्ग दृष्टिगोचर नहीं होता है अर्थात् समझ में नहीं आता है। जो गृहस्‍थश्रम को त्‍यागकर मोक्ष को ही आदर देता है, उसकेलिये द्युलोक में तेजोमय सनातन स्‍थान की प्राप्ति होती है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत यानसंधिपर्वमें विदुरवाक्‍यसंबंधी तिरसठवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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