महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 95 श्लोक 18-38
पञ्चनवतितम (95) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)
महात्मा पांडवों से सुरक्षित होने पर आपको देवताओं सहित इन्द्र भी नहीं जीत सकते, फिर दूसरे किसी राजा की तो बात ही क्या है ? भरतश्रेष्ठ ! जिस पक्ष में भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, विवंशति, अश्वत्थामा, विकर्ण, सोमदत्त, बाह्लिक, सिंधूराज जयद्रथ, कलिङ्गराज, काम्बोजनरेश सुदक्षिण तथा युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन, नकुल-सहदेव, महातेजस्वी सात्यिकी तथा महारथी युयुत्सु हों, उस पक्ष के योद्धाओं से कौन विपरीत बुद्धि वाला राजा युद्ध कर सकता है ? शत्रुसुदन नरेश ! कौरव और पांडवों के साथ रहने पर आप पुन: सम्पूर्ण जगत् के सम्राट होकर शत्रुओं के लिए अजेय हो जाएँगे। शत्रुओं को संताप देने वाले भूपाल ! उस दशा में जो राजा आपके समान या आपसे बड़े हैं, वे भी आपके साथ संधि कर लेंगे। इस प्रकार आप अपने पुत्र, पौत्र, पिता, भाई और सुहृदों द्वारा सर्वथा सुरक्षित रहकर सुख से जीवन बिता सकेंगे। पृथ्वीपते ! यदि आप पहले की भांति इन पांडवों का ही सत्कार करके इन्हें आगे रखे तो इस सारी पृथ्वी का उपभोग करेंगे । भारत ! इन समस्त पांडवों तथा अपने पुत्रों के साथ रह-कर आप दूसरे शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त कर सकेंगे । इस प्रकार आपके सम्पूर्ण स्वार्थ की सिद्धि होगी। शत्रुसंतापी नरेश ! यदि आप मंत्रियों सहित अपने समस्त पुत्रों ( पांडवों और कौरवों ) से मिलकर रहेंगे तो उन्हीं के द्वारा जीती हुई इस पृथ्वी का राज्य भोगेंगे। महाराज ! युद्ध छिड़ने पर तो महान संहार ही दिखाई देता है । राजन् ! इस प्रकार दोनों पक्ष का विनाश कराने में आप कौनसा धर्म देखते हैं ? भरतश्रेष्ठ ! यदि पांडव युद्ध में मारे गए अथवा आपके महाबली पुत्र ही नष्ट हो गए तो उस दशा में आपको कौनसा सुख मिलेगा ? यह बताइये। पांडव तथा आपके पुत्र सभी शूरवीर, अस्त्रविद्या के पारंगत तथा युद्ध की अभिलाषा रखने वाले हैं । आप इन सबकी महान् भय से रक्षा कीजिये। युद्ध के परिणाम पर विचार करने से हमें समस्त कौरव और पांडव नष्टप्राय दिखायी देते हैं । दोनों ही पक्षों के शूरवीर रथी रथियों से मारे जाकर नष्ट हो जाएँगे। नृपश्रेष्ठ ! भूमंडल के समस्त राजा यहाँ एकत्र हो अमर्ष में भरकर इन प्रजाओं का नाश करेंगे। कुरुकुल को आनंदित करने वाले नरेश ! आप इस जगत् की रक्षा कीजिये; जिससे इन समस्त प्रजाओं का नाश न हो । आपके प्रकृतिस्थ होने पर ये सब लोग बच जायेंगे। राजन् ! ये सब नरेश शुद्ध, उदार, लज्जाशील, श्रेष्ठ, पवित्र कुलों में उत्पन्न और एक दूसरे के सहायक हैं । आप इन सबकी महान् भय से रक्षा कीजिये। आप ऐसा प्रयत्न कीजिये, जिससे ये भूपाल परस्पर मिलकर तथा एक साथ खा-पीकर कुशलपूर्वक अपने-अपने घर को वापस लौटें। शत्रुओं को संताप देनेवाले भरतकुलभूषण ! ये राजालोग उत्तम वस्त्र और सुंदर हार पहनकर अमर्ष और वैर को मन से निकालकर यहाँ से सत्कारपूर्वक विदा हों। भरतश्रेष्ठ ! अब आपकी आयु भी क्षीण हो चली है; इस बुढ़ापे में आपका पांडवों के ऊपर वैसा ही स्नेह बना रहे, जैसा पहले था; अत: संधि कर लीजिये। भरतर्षभ ! पांडव बाल्यावस्था में ही पिता से बिछुड़ गए थे । आपने ही उन्हें पाल-पोसकर बड़ा किया; अत: उनका और अपने पुत्रों का न्यायपूर्वक पालन कीजिये।
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