महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 10 श्लोक 40-56

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दशम (10) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: दशम अध्याय: श्लोक 40-56 का हिन्दी अनुवाद

कर्ण ने कहा - गान्णारी नन्दन ! मैंने तुम्हारे समीप पहले ही यह बात कह दी है कि मैं पाण्डवों को, उनके पुत्रों और श्रीकृष्ण के साथ ही परास्त कर दूँगा। महाराज ! तुम धैर्य धारण करो। मैं तुम्हारा सेनापति बनूँगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। अब पाण्डवों को पराजित हुआ ही समझो। संजय कहते हैं - महाराज ! कर्ण के ऐसा कहने पर राजा दुर्योधन अन्य सामन्त नरेशाके के साथ उसी प्रकार उठकर खड़ा हो गया, जैसे देवताओं के साथ इन्द्र खड़े होते हैं। जैसे देवताओं ने स्कन्द को सेनापति बनाकर उनका सत्कार किया था, उसी प्रकार समस्त कौरव कर्ण को सेनापति बनाकर उसका सत्कार करने के लिये उद्यत हुए। राजन् ! विजयाभिलाषी दुर्योधन आदि राजाओं ने शास्त्रोक्त विधि के द्वारा कर्ण का अभिषेक किया। अभिषेक के लिये सोने तािा मिट्टी के घड़ों में अभिमनित्रत जल रक्खे गये थे। हाथी के दाँत तथा गैंडे और बैलों के सींगों के बने हुए पात्रों में भी पृथक् - पृथक् जल रक्खा गया था। उन पात्रों में मणि और मोती भी थे। अन्यान्य पवित्र गन्धशाली पदार्थ और औषध भी डाले गये थे। कर्ण गूलर काठ की बनी हुई चैकी पर, जिसके ऊपर रेशमी कपड़ा बिछा हुआ था, सुचा पूर्वक बैठा था।
उस अवस्था में शास्त्रीय विधि के अनुसार पूर्वोक्त सुसज्जित सामग्रियों द्वारा ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों तथा सम्मानित शूद्रों ने उसका अभिषेक किया और अभिषेक हो जाने पर श्रेष्ठ आसन पर बैठे हुए महामना कर्ण की उन सब लोगों ने स्तुति की। राजेन्द्र ! इस प्रकार अभिषेक कार्य सम्पनन हो जाने पर शत्रु वीरों का संहार करने वाले राधा पुत्र कर्ण ने स्वर्ण मुद्राएँ गौएँ तथा धन देकर श्रेष्ठ ब्राह्मणों से स्वस्ति वाचन कराया। उस समय सूत, मागध और वन्दीजनों द्वारा की हुई अपनी स्तुति सुनता हुआ राधा पुत्र कर्ण वेद वादी ब्राह्मणों द्वारा अभिमन्त्रित उदय कालीन सेर्य के समान सुशोभित हो रहा था। तत्पश्चात् पुण्याह वाचन के याब्द से, वाद्यों की गंभीर ध्वनि से तथा शूरवीरों के जय - जयकार से मिली जुली हुई भयंकर आवाज वहाँ सब ओर गूँज उठी। उस स्थान पर एकत्र हुए सभी राजाओं ने ‘राधा पुत्र कर्ण की जय’ के नारे लगाये। वन्दीजनों तथा ब्राह्मणों ने उस समय पुरुष शिरोमणि कर्ण को आशीर्वाद देते हुए कहा - ‘राणा पुत्र ! तुम कुन्ती के पुत्रों को, उनके सेवकों तथा श्रीकृष्ण के साथ महासमर में जीत लो और हमारी विजय के लिये कुन्ती कुमारों को पान्चालों सहित मार डालो। ठी उसी तरह, जैसे सूर्य अपनी उग्र किरणों द्वारा सदा उदय होते ही अन्धकार का विनाशउ कर देता है। ‘जैसे उल्लू सूर्य की प्रज्वलित किरणों की ओर देखने में असमर्थ होते हैं, उसी प्रकार तुम्हारे छोड़े हुए बाणों की ओर श्रीकृष्ण सहित समस्त पाण्डव नहीं देख सकते।
‘जैसे हाथ में वज्र लिये हुए इन्द्र के सामने दानव नहीं खड़े हो सकते, उसी प्रकार समरांगण में तुम्हारे सामने पान्चाल और पाण्डव नहीं ठहर सकते हैं। राजन् ! इस प्रकार अभिषेक सम्पन्न हो जाने पर अमित तेजस्वी राधा पुत्र कर्ण अपनी प्रभा तथा रूप से दूसरे सूर्य के समान अधिक प्रकाशित होने लगा। काल से प्रेरित हुआ आपका पुत्र दुर्योधन राधा कुमार कर्ण को सेनापति के पद पर अभिषिक्त करके अपने आपको कृतार्थ मानने लगा। राजन् ! शत्रुदमन कर्ण ने भी सेनापति का पद प्राप्त करके सूर्योदय के समान सेना को युद्ध के लिये तैयार होने की आज्ञा दे दी। भारत ! वहाँ आपके पुत्रों से घिरा हुआ कर्ण तारकामय संग्राम में देवताओं से घिरे हुए स्कन्द के समान सुशोभित हो रहा था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में कर्ण का अभिषेक विषयक दसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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