महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 61 श्लोक 46-63
एकषष्टितम (61) अध्याय: कर्ण पर्व
राजन्। समरागण में कुपित हुए प्रतापी सुबलपुत्र ने सात्यकि के कवच को छिन्न-भिन्न करके उन सुवर्णमय ध्वज को भी काट दिया । महाराज। इसी प्रकार सात्यकि ने भी उसे पैने बाणों द्वारा घायल कर दिया और उसके सारथि पर भी तीन बाणों का प्रहार किया । तत्पश्चात् उन्होंने शीघ्रतापूर्वक बाण मारकर शकुनि के घोड़ों को यमलोक पहुंचा दिया। भरतश्रेष्ठ । तब शकुनि भी सहसा अपने रथ से कूदकर महामनस्वी उलूक के रथ पर तुरंत जा चढ़ा । उलूक युद्ध में शोभा पाने वाले सात्यकि के निकट से अपने रथ को शीघ्र दूर हटा ले गया। राजन्। तदनन्तर सात्यकि ने रणभूमि में आपके पुत्रों की सेना पर बड़े वेग से आक्रमण किया। इससे उस सेना में भगदड़ मच गयी । प्रजानाथ। सात्यकि के बाणों से ढकी हुई आपकी सेना शीघ्र ही दसों दिशाओं की ओर भाग चली और प्राणहीन सी होकर पृथ्वी पर गिरने लगी । आपके पुत्र दुर्योधन ने युद्धस्थल में भीमसेन को रोका। भीमसेन ने दो ही घड़ी में इस जगत् के स्वामी दुर्योधन को घोड़े, सारथि, रथ और ध्वज से वंचित कर दिया; इससे सब लोग बड़े प्रसन्न हुए । तब राजा दुर्योधन वहां भीमसेन के रास्ते से दूर हट गया। फिर तो सारी कौरव सेना भीमसेन पर टूट पड़ी। भीम सेन को मारने की इच्छा से आये हुए कौरवों का महान् सिंहनाद सब ओर गूंज उठा । दूसरी ओर युधामन्यु ने कृपाचार्य को घायल करके तुरंत ही उनके धनुष को काट दिया। तदनन्तर शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ कृपाचार्य ने दूसरा धनुष हाथ में लेकर युधामन्यु के ध्वज, सारथि और छत्र को धराशायी कर दिया। फिर तो महारथी युधामन्यु रथ के द्वारा ही वहां से पलायन कर गया । दूसरी ओर उत्तमौजा ने भयंकर पराक्रमी और भयानक रुपवाले कृतवर्मा को अपने बाणों द्वारा सहसा उसी प्रकार आच्छादित कर दिया, जैसे मेघ जल की वर्षाद्वारा पर्वत को ढक देता है । परंतप। उन दोनों का वह महान् युद्ध बड़ा भयंकर था। प्रजानाथ। वैसा युद्ध मैंने पहले कभी नहीं देखा था । राजन्। तदनन्तर कृतवर्मा ने युद्धस्थल में सहसा उत्तमौजा की छाती में गहरा आघात किया। उत्तमौजा अचेत-सा होकर रथ के पिछले भाग में बैठ गया । तब उसका सारथि रथियों में श्रेष्ठ उत्तमौजा को रथ के द्वारा वहां से दूर हटा ले गया। फिर तो सारी कौरव-सेना भीमसेन पर टूट पड़ी । दु:शासन और शकुनि ने विशाल गजसेना के द्वारा पाण्डुपुत्र भीमसेन को चारों ओर से घेरकर उन पर बाणों द्वारा प्रहार आरम्भ कर दिया । उस समय भीमसेन ने सैकड़ों बाणों की मार से अमर्षशील दुर्योधन को युद्ध से विमुख करके हाथियों की उस सेना पर वेग पूर्वक आक्रमण किया । सहसा अपनी ओर आती हुई उस गजसेना को देखते ही भीमसेन अत्यन्त कुपित हो उठे और दिव्यास्त्रों का प्रयोग करने लगे ।
« पीछे | आगे » |