महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 74 श्लोक 19-39
चतु:सप्ततितम (74) अध्याय: कर्ण पर्व
मधुसूदन ! जिस दुरात्मा ने मेरे वध के लिये यह व्रत लिया है कि जब तक अर्जुन को मार न दूँगा, तब तक दूसरों से पैर न धुलाऊँगा । उस पापी के इस व्रत को मिथ्या करके झुकी हुई गाँठवाले बाणों द्वारा उसके इस शरीर को रथ से नीचे गिरा दूँगा।जो भूमण्डल में दूसरे किसी पुरूष को रणभूमि में अपने समान नहीं मानता है, आज वह पृथ्वी उस सूतपुत्र के रक्त का पान करेगी । सूतपुत्र कर्ण ने धृतराष्ट्र के मत में होकर अपने गुणों की प्रशंसा करते हुए द्रौपदी से यह कहा था कि कृष्णे ! तू पतिहीन है उसके इस कथन को मेरे तीखे बाण असत्य कर दिखायेंगे और क्रोध में भरे हुए विषधर सर्पों के समान उसके रक्त का पान करेंगे । मैं बाण चलाने में सिद्धहस्त हूँ । मेरे द्वारा गाण्डीव धनुष से छोडे़ गये बिजली के समान चमकते हुए नाराच कर्ण को परमगति प्रदान करेंगे । राधा पुत्र कर्ण ने भरी सभा में पाण्डवों की निन्दा करते हुए द्रौपदी से जो क्रूरतापूर्ण वचन कहा था, उसके लिये उसे बड़ा पश्चाताप होगा । जो पाण्डव वहाँ थोथे तिलों के समान नपुंसक कहे गये थे, वे दुरात्मा सूतपुत्र वैकर्तन कर्ण के मारे जाने पर आज अच्छे तिल और शूरवीर सिद्ध होंगे । अपने गुणों की प्रशंसा करते हुए सूतपुत्र कर्ण ने धृतराष्ट्र के पुत्रों से जो यह कहा था कि मैं पाण्डवों से तुम्हारी रक्षा करूँगा उसके इस कथन को मेरे तीखे बाण असत्य कर देंगे और पाण्डवों का युद्ध विषयक उद्योग समाप्त हो जायेगा । जिसने यह कहा था कि मैं पुत्रों सहित समस्त पाण्डवों को मार डालूँगा उस कर्ण को आज समस्त धनुर्धरों के देखते देखते मैं नष्ट कर दूँगा । जिसके बल-पराक्रम का भरोसा करके महामनस्वी दुर्बुद्धि एवं दुरात्मा दुर्योधन सदा हम लोगों का अपमान करता आया है, उस कर्ण का आज युद्धस्थल में वध करके मैं अपने भाई युधिष्ठिर को संतुष्ट करूँगा । नाना प्रकार के बाणों का प्रहार करके मैं शत्रु सैनिकों को भयभीत कर दूँगा । धनुष को कान तक खींचकर छोडे गये यमराष्टवर्धक बाणों द्वारा धराशायी किये गये रथों और हाथियों से रणभूमि की शोभा बढ़ाऊँगा । मैं महासमर में शक्ति सम्पन्न रणदुर्भद एवं भयंकर कर्ण को आज अपने बाणों द्वारा मार डालूँगा । श्रीकृष्ण ! आज कर्ण के मारे जाने पर राजासहित धृतराष्ट्र के सभी पुत्र सिंह से डरे हुए मृगों के समान भयभीत हो सम्पूर्ण दिशाओं में भाग जायँ । आज युद्धस्थल में पुत्रों और सुह्रदयों सहित कर्ण के मेरे द्वारा मारे जाने पर राजा दुर्योधन अपने लिये निरन्तर शोक करे । श्रीकृष्ण ! अमर्षशील दुर्योधन आज कण्र को रणभूमि में मारा गया देख मुझे सम्पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ समझ ले । मैं आज ही पुत्र, पौत्र, मन्त्री और सेवकों सहित राजा धृतराष्ट्र को राज्य की ओर से निराश कर दूँगा । केशव ! आज चक्रवाक तथा भिन्न-भिन्न मांस भोजी पक्षी बाणों से कटे हुए कर्ण के अंगों को उठा ले जायँगे । मधुसूदन आज संग्राम में समस्त धनुर्धरों के देखते-देखते मैं राजापुत्र कर्ण का मस्तक काट डालूँगा । श्रीकृष्ण ! आज तीखे विपाठों और क्षुरों से रणभूमि में दुरात्मा राधापुत्र के अंगों को काट डालूँगा ।
« पीछे | आगे » |