महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 74 श्लोक 40-58
चतु:सप्ततितम (74) अध्याय: कर्ण पर्व
आज वीर राजा युधिष्ठिर महान् कष्ट और अपने चिरसंचित मानसिक संताप से छुटकारा पा जायँगे । केशव ! आज मैं बन्धु-बान्ध्वों सहित राधापुत्र को मारकर धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर को आनन्दित करूँगा । श्रीकृष्ण ! आज मैं युद्धस्थल में कर्ण के पीछे चलने वाले दीन-हीन सैनिकों को सर्पविष और अग्नि के समान बाणों द्वारा भस्म कर डालूँगा । गोविन्द ! आज मैं सुवर्णमय कवच और मणिमय कुण्डल धारण करने वाले भूपतियों की लाशों से रणभूमि को पाट दूँगा । मधुसूदन ! आज पैने बाणों से मैं अभिमन्यु के समस्त शत्रुओं के शरीरों और मस्तकों को मथ डालूँगा । केशव ! या तो आज इस पृथ्वी को धृतराष्ट्र पुत्रों से पार्थ ! दृढ़तापूर्वक क्रोध को धारण करने वाले ये भीमसेन सब ओर से सृंजयों द्वारा घिरकर कर्ण के साथ सूनी करके अपने भाई के अधिकार में दे दूँगा या आप अर्जुन रहित पृथ्वी पर विचरेंगे । श्रीकृष्ण ! आज मैं सम्पूर्ण धनुर्धरों के, क्रोध के, कौरवों के, बाणो के तथा गाण्डीव धनुष के भी ऋण से मुक्त हो जाऊँगा । श्रीकृष्ण ! जैसे इन्द्र ने शम्बरासुर का वध किया था, उसी प्रकार मैं रणभूमि में कर्ण को मारकर आज तेरह वर्षों से संचित किये हुए दु:ख का परित्याग कर दूँगा । आज युद्ध में कर्ण के मारे जाने पर मित्र के कार्य की सिद्धि चाहने वाले सोमकवंशी महारथी अपने को कृतकार्य समझ लें । माधव ! आज कर्ण के मारे जाने और विजय के कारण मेरी प्रतिष्ठा बढ़ जाने पर नजाने शिनिपौत्र सात्यकि को कितनी प्रसन्नता होगी । मैं रणभूमि में कर्ण और उसके महारथी पुत्र को मारकर भीमसेन, नकुल, सहदेव तथा सात्यकि को प्रसन्न करूँगा । माधव ! आज महासमर में कर्ण का वध करके मैं धृष्टद्युम्न, शिखण्डी तथा पांचालों के ऋण से छुटकारा पा जाऊँगा । आज समस्त सैनिक देखें कि संग्राम भूमि में अमर्षशील धनंजय किस प्रकार कौरवों से युद्ध करता और सूतपुत्र कर्ण को मारता है । मैं आपके निकट पुन: अपनी प्रशंसा से भरी हुई बात कहता हूँ, धनुर्वेद में मेरी समानता करने वाला इस संसार में दूसरा कोई नहीं हैं । फिर पराक्रम में मेरे जैसा कौन है ? मेरे समान क्षमाशील भी दूसरा कौन है तथा क्रोध में भी मेरे जैसा दूसरा कोई नहीं है । मैं धनुष लेकर अपने बाहुबल से एक साथ आये हुए देवताओं, असुरों तथा सम्पूर्ण प्राणियों को परास्त कर सकता हूँ । मेरे पुरूषार्थ को उत्कृष्ट से भी उत्कृष्ट समझो । मैं अकेला ही बाणों की ज्वाला से युक्त गाण्डीव धनुष के द्वारा समस्त कौरवों और बाह्रिकों को दल-बल सहित मारकर ग्रीष्म ऋतु में सूखे काठ में लगी हुई आग के समान सब को भस्म कर डालूँगा । मेरे एक हाथ में बाण के चिन्ह हैं और दूसरे में फैले हुए बाण सहित दिव्य धनुष की रेखा है । इसी प्रकार मेरे पैरों में भी रथ और ध्वजा के चिन्ह हैं । मेरे जैसे लक्षणों वाला योद्धा जब युद्ध में उपस्थित होता है, तब उसे शत्रु जीत नहीं सकते हैं । भगवान् ने ऐसा कहकर अद्वितिय वीर शत्रुसूदन अर्जुन क्रोध से लाल आँखे किये समर भूमि में भीमसेन को संकट से छुड़ाने और कर्ण के मस्तक को धड़ से अलग करने के लिये शीघ्रतापूर्वक वहाँ से चल दिये ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में अर्जुनवाक्य विषयक चौहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ ।
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