महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 79 श्लोक 66-79

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एकोनाशीतितम (79) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकोनाशीतितम अध्याय: श्लोक 66-79 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण और अर्जुन को एक रथ पर मिले हुए देखकर मुझे बड़ा भय लगता हैं, मेरा हृदय घबरा उठता है। अर्जुन युद्ध में समस्त धनुर्धरों से बढ़कर हैं और नारायणस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण भी चक्र-युद्ध में अपना सानी नहीं रखते। पाण्डुपुत्र अर्जुन और वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण दोनों ऐसे ही पराक्रमी हैं। हिमालय भले ही अपने स्थान से हट जाये; किंतु दोनों कृष्ण अपनी मर्यादा से विचलित नहीं हो सकते। वे दोनों ही शौर्यसम्पन्न, बलवान्, सुदढ़ आयुघोंवाले और महारथी हैं, उसके शरीर सुगठित एवं शक्तिशाली हैं। शल्य ! ऐसे अर्जुन और श्रीकृष्ण का सामना करने के लिये मेंरे सिवा दूसरा कौन जा सकता है ? मद्रराज ! अर्जुन के साथ युद्ध के विषय में जो आज मेरा मनोरथ है, वह अविलम्ब और शीघ्र सफल होगा। यह युद्ध अत्यन्त अदभुत, विचित्र और अनुपम होगा। में युद्धस्थल में इन दोनों को मार गिराऊॅगा अथवा वह दोनों ही कृष्ण मुझे मार डालेंगे। राजन् ! शत्रुहन्ता कर्ण शल्य से ऐसा कहकर रणभूमि में मेघ के समान उच्चस्वर से गर्जना करने लगा। उस समय आपके पुत्र दुर्योधन ने निकट आकर उसका अभिनन्दन किया। उससे मिलकर कर्ण ने कुरूकुल के उस प्रमुख वीर से, महाबाहु कृपाचार्य और कृतवर्मा से, भाईयों सहित गान्धार राज शकुनि से, गुरूपुत्र अश्वत्थामा से, अपने छोटे भाई से तथा पैदल और गजारोही सैनिकों से इस प्रकार कहा- वीरों ! श्रीकृष्ण और अर्जुन पर धावा करो, उन्हे आगे बढ़ने से रोको तथा शीध्र ही सब प्रकार से प्रयत्न करके उन्हें परिश्रम से थका दो।
भूमिपालो ! ऐसा करो, जिससे तुम्हारे द्वारा अत्यन्त क्षत-विक्षत हुए उन दोनों कृष्णों को आज में सुखपूर्वक मार सकूं। तब बहुत अच्छा कहकर वे अत्यन्त वीर सैनिक बड़ी उतावली के साथ अर्जुन को मार डालने के लिये एक साथ आगे बढ़े। कर्ण की आज्ञा का पालन करने वाले वे महारथी योद्धा युद्धस्थल में बाणों द्वारा अर्जुन को चोट पहुंचाने लगे।। परंतु जैसे प्रचुर जल से भरा हुआ महासागर नदियों और नदों के जल को आत्मसात् कर लेता है, उसी प्रकार अर्जुन ने समरांगण में उन सब वीरों को ग्रस लिया। वे कब धनुष पर उत्तम बाणों का संधान करते और कब उन्हें छोडते हैं, यह शत्रुओं को नहीं दिखायी देता था; किंतु अर्जुन के बाणों से विदीर्ण हुए हाथी, घोडे़ और मनुष्य प्राणशुन्य हो धड़ाधड़ गिरते जा रहे थे। उस समय अर्जुन प्रलयकाल के सूर्य की भांति तेजस्वी जान पड़ते थे। उनके बाण किरण-समूहों के समान सब ओर छिटक रहे थे। खींचा हुआ गाण्डीव धनुष सूर्य के मनोहर मण्डल-सा प्रतीत होता था। जैसे रोगी नेत्रोंवाले मनुष्य सूर्य की ओर से नहीं देख सकते, उसी प्रकार कौरव अर्जुन की ओर देखने में असमर्थ हो गये थे। कौरव महारथियों के चलाये हुए उत्तम बाणों को कुन्तीकुमार ने अपने शरसमूहों द्वारा हॅसते-हॅसते काट दिया। उनका गाण्डीव धनुष खींचा जाकर पूरा मण्डलाकार बन गया था और उसके द्वारा वे उन शत्रु-सैनिकों पर बारंबार बाण समुहों का प्रहार करते थे। राजेन्द्र ! जैसे ज्येष्ठ और आषाढ़ के मध्यवर्ती प्रचण्ड किरणोंवाले सूर्यदेव धरती के जलसमूहों को अनायास ही सोख लेते हैं, उसी प्रकार अर्जुन अपने बाणसमूहों का प्रहार करके आपकी सेना को भस्म करने लगे। उस समय कृपाचार्य उनपर बाण-समूहों की वर्षा करते हुए उनकी ओर दौड़े। इसी प्रकार कृतवर्मा, आपके पुत्र स्वयं राजा दुर्योधन और महारथी अश्वत्थामा भी पर्वत पर वर्षा करनेवाले बादलों के समान अर्जुन पर बाणों की वृष्टि करने लगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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