महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 84 श्लोक 22-36
चतुरशीतितम (84) अध्याय: कर्ण पर्व
राजन् ! जैसे घीकी आहुति पड़ने से अग्नि अत्यन्त प्रज्वलित हो उठती है, उसी प्रकार कर्ण का पुत्र बाणों के प्रहार से अपनी प्रभा से, अस्त्रों के प्रयोंग से और रोष से जल उठा। उसने नकुल के सब घोड़ों को, जो वनायु देश में उत्पन्न, श्वेत वर्ण, तीव्रगामी और सोने की जाली से आच्छादित थे, अपने अस्त्रों द्वारा काट डाला। तत्पश्चात् अश्वहीन रथसे उतरकर स्वर्णमय निर्मल चन्द्राकार चिन्हो से युक्त ढाल और आकाश के समान स्वच्छ तलवार ले उसे घुमाते हुए नकुल एक पक्षी के समान विचरने लगे। फिर विचित्र रीति से युद्ध करने वाले नकुल ने बडे़-बडे़ रथियों, सवारों सहित घोड़ों और हाथियों को तुरन्त ही आकाश में तलवार घुमाकर काट डाला। वे अश्वमेघ-यज्ञ में शामित्र कर्म करनेवाले पुरूष के द्वारा मारे गये पशुओं के समान तलवार से कटकर-पृथ्वीपर गिर पडे़।
युद्धस्थल में विजय की इच्छा रखनेवाले एकमात्र वीर नकुल के द्वारा उत्तम चन्दन से चर्चित अंगोवाले, नाना देशों में उत्पन्न, युद्धकुशल, सत्यप्रतिज्ञ और अच्छी तरह पाले-पोसे गये दो हजार योद्धा काट डाले गये। अपने ऊपर आक्रमण करनेवाले नकुल के पास पहुंचकर वृषसेन ने अपने सायकों द्वारा उन्हें सब ओर से बींध डाला।
बाणों से पीड़ित हुए नकुल अत्यन्त कुपित हो उठे और स्वयं घायल होकर उन्होंने वीर वृषसेन को भी बींध डाला। उस महान् भय के अवसर पर भाई भीम से सुरक्षित हो महामना नकुल ने वहां भयंकर पराक्रम प्रकट किया। अकेले ही बहुत-से पैदल मनुष्यों, घोड़ों, हाथियों और रथों का संहार करते एवं खेलते हुए-से वीर नकुल को रोष में भरे हुए कर्णपुत्र ने अठारह बाणों द्वारा घायल कर दिया। राजन् ! उस महासमर में कुपित हुए वृषसेन के द्वारा अत्यन्त घायल किये गये वेगवान् वीर पाण्डुपुत्र नकुल कर्ण के पुत्रको मार डालने की इच्छा से उसकी ओर दौडे़। जैसे बाज मांस के लोभ से पंख फैलाकर सहसा टूट पड़ता है, उसी प्रकार युद्धस्थल में वेगपूर्वक आक्रमण करनेवाले उदार पराक्रमी नकुल को वृषसेन ने अपने पैने बाणों से ढक दिया। नकुल उसके उन बाणसमूहों को व्यर्थ करते हुए विचित्र मार्गो से विचरने लगे (युद्ध के अदभुत पैंतरे दिखाने लगे)। नरेन्द्र ! तलवार के विचित्र हाथ दिखाते हुए शीघ्रतापूर्वक विचरने वाले नकुल की सहस्त्र तारों के चिन्हवाली ढालको कर्ण के पुत्र ने उस महायुद्ध में अपने विशाल बाणों द्वारा नष्ट कर दिया।
इसके बाद शत्रुओं का सामना करने में समर्थ वृषसेन ने अत्यन्त वेगशाली और तीखी धारवाले छः बाणों द्वारा तलवार घुमाते हुए नकुल की उस तलवार के भी शीघ्रतापूर्वक टुकडे़-टुकडे़ कर डाले। वह तलवार लोहे की बनी हुई, तेजधारवाली तीखी, भारी भार सहन करने में समर्थ, म्यान से बाहर निकली हुई, भयंकर, सर्प के समान उग्र रूपधारी, अत्यन्त घोर और शत्रुओं के शरीरों का अंत कर देनेवाली थी। तलवार काटने के पश्चात् उसने पुनः प्रज्जलित एवं पैने बाणोंद्वारा नकुल की छाती में गहरी चोट पहुंचायी। राजन् ! महामना नकुल रणभूमि में अन्य मनुष्यों के लिये दुष्कर तथा सज्जन पुरूषों द्वारा सेवित उत्तम कर्म करके वृषसेन के बाणों से संतप्त हो बड़ी उतावली के साथ भीमसेन के रथ पर जा चढे़। अपने घोड़ों के मारे जाने पर कर्णपुत्र के बाणों से पीड़ित हुए माद्रीकुमार नकुल अर्जुन के देखते-देखते पर्वत के शिखर पर उछलकर चढ़ने वाले सिंह के समान छलाँग मारकर भीमसेन के रथ पर आरूढ़ हो गये।
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