महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 84 श्लोक 37-42
चतुरशीतितम (84) अध्याय: कर्ण पर्व
इससे महामनस्वी वीर वृषसेन को बड़ा क्रोध हुआ। वह एक रथपर एकत्र हुए उन महारथी पाण्डुकुमारों को बाणों द्वारा विदीर्ण करता हुआ उन दोनों पर बाणसमूहों की वर्षा करने लगा। जब पाण्डुपुत्र नकुल का वह रथ नष्ट हो गया और बाणों द्वारा उनकी तलवार शीघ्रतापूर्वक काट दी गयी, तब दूसरे कौरव वीर भी संगठित हो निकट जाकर उन दोनों को बाणों की वर्षा से चोट पहुँचाने लगे। तब वृषसेन पर कुपित हुए पाण्डवपुत्र भीमसेन और अर्जुन घीकी आहुति पाकर प्रज्वलित हुए दो अग्नियों के समान प्रकाशित होने लगे। उन दोनों ने अपने आस-पास एकत्र हुए कौरव सैनिकों पर अत्यन्त घोर बाण वर्षा आरम्भ कर दी। तदनन्तर वायुपुत्र भीमसेन ने अर्जुन से कहा- देखो, यह नकुल वृषसेन से पीड़ित हो गया है। कर्ण का यह पुत्र हमें बहुत सता रहा है, अतः तुम इस कर्णपुत्रपर आक्रमण करो। भीमसेन के रथ के समीप आकर जब किरीटधारी अर्जुन उनकी बात सुनकर जाने लगे, तब नकुल ने भी पास आये हुए वीर अर्जुन की ओर देखकर उनसे कहा-भैया ! आप इस वृषसेन को शीध्र मार डालिये। युद्ध में सामने आये हुए भाई नकुल के ऐसा कहने पर किरीटधारी अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा काबू में किये हुए कपिध्वज रथ को सहसा वृषसेन की ओर तीव्र वेग से हांक दिया।
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