महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 90 श्लोक 1-11

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नवतितम (90) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन और कर्ण का घोर युद्ध भगवान् श्रीकष्ण द्वारा अर्जुन की सर्पमुख बाण से रक्षा तथा कर्ण का अपना पहिया पृथ्वी में फँस जानेपर अर्जुन से बाण न चलाने के लिये अनुरोध करना

संजय कहते हैं- राजन् ! तदनन्तर भागे हुए कौरव, जिनकी सेना तितर-बितर हो गयी थी, धनुष से छोड़ा हुआ बाण जहाँ तक पहुँचता है, उतनी दूरी पर जाकर खडे़ हो गये। वहीं से उन्होंने देखा कि अर्जुन का बडे़ वेग से बढ़ता हुआ अस्त्र चारों ओर बिजली के समान चमक रहा है। उस महासमर में अर्जुन कुपित होकर कर्ण के वध के लिये जिस-जिस अस्त्र का वेगपूर्वक प्रयोग करते थे, उसे आकाश में ही कर्ण अपने भयंकर बाणों द्वारा काट देता था। कर्ण का धनुष अमोघ था। उसकी डोरी भी बहुत महबूत थी। वह अपने धनुष को खींचकर उसके द्वारा बाण समूहों की वर्षा करने लगा। कौरव सेना को दग्ध करनेवाले अर्जुन के छौड़े़ हुए अस्त्र को उसने सुवर्णमय पंखवाले बाणों द्वारा धूल में मिला दिया। महामनस्वी वीर कर्ण ने परशुरामजी से प्राप्त हुए महाप्रभावशाली शत्रुनाशक आथर्वण अस्त्र का प्रयोग करके पैने बाणों द्वारा अर्जुन उस अस्त्र को, जो कौरव सेना को दग्ध कर रहा था, नष्ट कर दिया। राजन् ! जैसे दो हाथी अपने भयंकर दाँतों से एक दूसरे पर चोट करते हैं, उसी प्रकार अर्जुन और कर्ण एक दूसरे पर बाणों का प्रहार कर रहे थे।उस समय उन दोनों में बड़ा भारी युद्ध होने लगा।
नरेश्वर ! उस समय वहाँ अस्त्रसमूहों से आच्छादित होकर सारा प्रदेश सब ओर से भयंकर प्रतीत होने लगा। कर्ण और अर्जुन ने अपने बाणों की वर्षा से आकाश को ठसाठस भर दिया। तदनन्तर समस्त कौरवों और सोमकों ने भी देखा कि वहाँ बाणों का विशाल जाल फैल गया है। बाण जनित उस भयानक अन्धकार में उस समय उन्हें दूसरे किसी प्राणी का दर्शन नहीं होता था। राजन् ! सम्पूर्ण धनुर्धारियों में श्रेष्ठ वे दोनों नरवीर उस भयानक समर में अपने शरीरों का मोह छोड़कर बड़ा भारी परिश्रम कर रहे थे, वे दोनों ही शत्रुओं के लिये दुर्जय थे। युद्ध में तत्पर होकर एक दूसरे के छिद्रों की ओर दृष्टि रखने वाले उन दोनों वीरों को देखकर देवता, ऋषि, गन्धर्व, यक्ष और पितर सभी हर्ष में भरकर उनकी प्रशंसा करने लगे। राजन् ! निरन्तर अनेकानेक बाणों का संधान और प्रहार करते हुए वे दोनों धनुर्धर वीर सिद्ध किये हुए विविध अस्त्रों द्वारा युद्ध में अदभुत पैंतरे दिखाने लगे।इस प्रकार संग्राम भूमि में जूझते समय उन दोनों वीरों में पराक्रम, अस्त्र संचालन, मायावल तथा पुरूषार्थ की दृष्टि से कभी सूतपुत्र कर्ण बढ़ जाता था और कभी किरीटधारी अर्जुन। युद्धस्थल में एक दूसरे पर प्रहार करने का अवसर देखते हुए उन दोनों वीरों का दूसरों के लिये दुःसह वह घोर आघात-प्रत्याघात देखकर रणभूमि में खडे़ हुए समस्त योद्धा आश्चर्य से चकित हो उठे। नरेन्द्र ! उस समय आकाश में स्थित हुए प्राणी कर्ण और अर्जुन दोनों की प्रशंसा करने लगे। वाह रे कर्ण! शाबाश अर्जुन! यही बात अन्तरिक्ष में सब ओर सुनायी देने लगी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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