महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 156 श्लोक 120-139
षट्पञ्चाशदधिकशततम (156) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )
’मामा ! तुम साठ हजार रथियों की सेना साथ लेकर अर्जुन पर आक्रमण करो। कर्ण, वृषसेन, कृपाचार्य, नील, उतर दिशा के सैनिक, कृतवर्मा, पुरूमित्र, सुतापन, दुःशासन, निकुम्भ, कुण्डभेदी, पराक्रमी पुरंजय, द्दढरथ, पताकी, हेम-कम्पन, शल्य, आरूणि, इन्द्रसेन, संजय, विजय, जय, कमलाक्ष, परऋाथी, जयवर्मा और सुदर्शन-ये सभी महारथी वीर तथा साठ हजार पैदल सैनिक तुम्हारे साथ जायंगे। ’मामा! जैसे देवराज इन्द्र असुरोंका संहार करते हैं, उसी प्रकार तुम भीमसेन, नकुल, सहदेव तथा धर्मराज युधिष्ठिर का भी वध कर डालो। मेरी विजय की आशा तुमपर ही अवलम्बित है। ’मातुल ! द्रोणकुमार अश्वत्थामा ने कुन्तीकुमारों को अपने बाणों द्वारा विदीर्ण कर डाला है; उनके शरीरों को क्षत-विक्षत कर दिया है। इस अवस्था में असुरों का वध करनेवाले कुमार कार्तिकेय की भांति तुम कुन्तीपुत्रों को मार डालो’। राजन् ! आपके पुत्र के ऐसा कहने पर सुबलपुत्र शकुनि आपके पुत्रों को प्रसन्न करने तथा पाण्डवों को दग्ध कर डालने की इच्छा से शीघ्र ही युद्ध के लिये चल दिया। तदनन्तर रणभूमि में रात्रि के समय द्रोणकुमार अश्वत्थामा तथा राक्षस घटोत्कच का इन्द्र और प्रलाद के समान अत्यन्त भयंकर युद्ध आरम्भ हुआ। उस समय घटोत्कच ने अत्यन्त कुपित होकर विष और अग्निके समान भयंकर दस सुद्दढ बाणों द्वारा कृपीकुमार अश्वत्थामा की छाती में गहरा आघात किया। भीमपुत्र घटोत्कच के चलाये हुए उन बाणों द्वारा गहरी चोट खाकर रथ में बैठा हुआ अश्वत्थामा वायु के झकझोरे हुए वृक्ष के समान कांपने लगा। इतने ही में घटोत्कच ने पुनः अण्जलिकनामक बाण से अश्वत्थामा के हाथ में स्थित अत्यन्त कान्तिमान् धनुष को शीघ्रतापूर्वक काट डाला।
तब द्रोणकुमार भार सहन करने में समर्थ दूसरा विशाल धनुष हाथ में लेकर, जैसे मेघ जलकी धारा बरसाता है, उसी प्रकार तीखे बाणों की वर्षा करने लगा। भारत ! तदनन्तर गौतमीपुत्र ने सुवर्णमय पंखवाले शत्रुनाशक आकाशचारी बाणों को उस राक्षस पर चलाया। उन बाणों से चौडी छाती वाले राक्षसों का वह समूह अत्यन्त पीडित हो सिंहों द्वारा व्याकुल किये गये मतवाले हाथियों के झुंड के समान प्रतीत होने लगा। जैसे भगवान् अग्निदेव प्रलयकाल में सम्पूर्ण प्राणियों को दग्ध कर देते हैं, उसी प्रकार अश्वत्थामा ने अपने बाणों द्वारा घोडे, सारथि, रथ और हाथियों सहित बहुतसे राक्षसों को जलाकर भस्म कर दिया। नरेश्वर ! जैसे भगवान् महेश्वर आकाश में त्रिपुर को दग्ध करके सुशोभित हुए थे, उसी प्रकार राक्षसों की अक्षौहिणी सेना को बाणों द्वारा दग्ध करके अश्वत्थामा शोभा पाने लगा। राजन् ! विजयी वीरो मे श्रेष्ठ द्रोणपुत्र अश्वत्थामा प्रलयकाल में समस्त प्राणियों को भस्म कर देनेवाले संवर्तक अग्नि के समान आपके शत्रुओं को दग्ध करके देदीप्यमान हो उठा।। तब घटोत्कच कुपित हो भयानक कर्म करनेवाले राक्षसों की उस विशाल सेना को आदेश दिया, ’अरे ! अश्वत्थामा को मार डालो’। घटोत्कच उस आज्ञा को शिरोधार्य करके दाढों से प्रकाशित, विशाल मुखवाले, घोर रूपधारी, फैले मुंह और डरावनी जीभ वाले भयानक राक्षस क्रोध से लाल आंखे किये महान् सिंहनाद से पृथ्वी को प्रतिध्वनित करते हुए हाथों मे भांति-भांति के अस्त्र-शस्त्र ले अश्वत्थामा को मार डालने-के लिये उसपर टूट पडे।
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