महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 175 श्लोक 100-114

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पञ्चसप्तत्यधिकशततम (175) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: पञ्चसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 100-114 का हिन्दी अनुवाद

उस समय वहाँ सम्पूर्ण प्राणी कर्ण की प्रशंसा करने लगे, क्योंकि उसने महादेवजी की बनायी हुई उस विशाल अशनि को अनायास ही उछलकर पकड़ लिया था। रणभूमि में ऐसा पराक्रम करके कर्ण पुनः अपने रथ पर आ बैठा। शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश! फिर सूतपुत्र कर्ण नाराचों की वर्षा करने लगा। दूसरों को सम्मान देने वाले महाराज! उस भयंकर संग्राम में कर्ण ने उस समय जो कार्य किया था, उसे सम्पूर्ण प्राणियों में दूसरा कोई नहीं कर सकता था। जैसे पर्वत पर जल की धाराएँ गिरती हैं, उसी प्रकार नाराचों के प्रहार से आहत हुआ घटोत्कच गन्धर्व नगर के समान पुनः अदृश्य हो गया। इस प्रकार शत्रुओं का संहार करने वाले विशालकाय घटोत्कच ने अपनी माया तथा अस्त्र-संचालन की शीघ्रता से कर्ण के उन दिव्यास्त्रों को नष्ट कर दिया। उस राक्षस के द्वारा माया से अपने अस्त्रों के नष्ट हो जाने पर भी उस समय कर्ण के मन में तनिक भी घबराहट नहीं हुई। वह उस राक्षस के साथ युद्ध करता ही रहा। महाराज! तत्पश्चात् क्रोध में भरे हुए महाबली भीमसेन कुमार घटोत्कच ने महारथियों को भयभीत करते हुए अपने बहुत से रूप बना लिये। तदनन्तर सम्पूर्ण दिशाओँ से सिंह, व्याघ्र, तरक्षु(जरख) अग्निमयी जिव्हावाले सर्प तथा लोहमय चंचुवाले पक्षी आक्रमण करने लगे। नागराज के समान घटोत्कच की ओर देखना कठिन हो रहा था। वह कर्ण के धनुष से छूटे हुए शिखाहीन बाणों द्वारा आच्छादित हो वहीं अन्तर्धान हो गया। उस समय बहुत से राक्षस, पिशाच, यातुधान, कुत्ते और विकराल मुखवाले भेड़िये कर्ण को काटने के लिये सब ओर से उस पर टूट पड़े और अपनी भयंकर गर्जनाओँ द्वारा उसेभयभीत करने लगे। कर्ण ने खून से रँगे हुए अपने बहुत से भयंकर आयुधों तथा बाणों द्वारा उनमें से प्रत्येक को बींध डाला। अपने दिव्यास्त्र से उस राक्षसी माया का विनाश करके उसने झुकी हुई गाँठवाले बाणों से घटोत्कच के घोड़ों को मार डाला। उन घोड़ों के सारे अंग क्षत-विक्षत हो गये थे, बाणों की मार से उनके पृष्ठभाग फट गये थे, अतः उस राक्षस के देखते-देखते वे पृथ्वी पर गिर पड़े। इस प्रकार अपनी माया नष्ट हो जाने पर हिडिम्बाकुमार घटोत्कच ने सूर्य पुत्र कर्ण से कहा- 'यह ले, मैं अभी तेरी मृत्यु का आयोजन करता हूँ' ऐसा कहकर वह वहीं अदृश्य हो गया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गतघटोत्‍कचवध पर्व में रात्रियुद्ध के प्रसंगमें कर्ण और घटोत्‍कच का युद्ध विषयक एक सौ पचहत्‍तरवां अध्‍याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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