महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 181 श्लोक 21-33

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एकाशीत्यधिकशततम (181) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: एकाशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-33 का हिन्दी अनुवाद

तुम्हारे हित के लिये मैंने ही युद्ध के मुहाने पर उसे मार डाला था। पराक्रमी चेदिराज शिशुपाल तो तुम्हारी आँखों के सामने ही मारा गया था। वह भी संग्राम में सम्पूर्ण देवताओं और असुरों द्वारा जीता नहीं जा सकता था। नरव्याघ्र! मैं सम्पूर्ण लोकों के हित के लिये और शिशुपाल एवं अन्य देवद्रोहियों का वध करने के लिये ही तुम्हारे साथ इस जगत् में अवतीर्ण हुआ हूँ।। हिडिम्ब, वक और किर्मीर- ये रावण के समान बलवान् थे और ब्राह्मणों तथा यशों का विनाश किया करते थे। इन तीनों को भीमसेन ने मार गिराया है। मायावी अलायुध घटोत्कच के हाथ से मारा गया है और घटोत्कच को भी मैंने ही युक्ति लगाकर कर्ण की चलायी हुई शक्ति से मरवा दिया है। यदि महासमर में कर्ण अपनी शक्ति द्वारा भीमसेन पुत्र घटोत्कच को नहीं मारता तो एक दिन मुझे उसका वध करना पड़ता। तुम लोगों का प्रिय करने की इच्छा से ही मैंने इसे पहले नहीं मारा था। यह ब्राह्मणों और यशों से द्वेष रखने वाला तथ धर्म का लोप करने वाला पापात्मा राक्षस था, इसीलिये इसे मरवा दिया है। निष्पाप पाण्डुनन्दन! इसी उपाय से मैंने इन्द्र की दी हुई शक्ति भी कर्ण के हाथ से दूर कर दी है। धर्म का लोप करने वाले सभी प्राणी मेरे वध्य हैं। धर्म की स्थापना के लिये ही मैंने यह अटल प्रतिज्ञा कर रक्खी है, मैं तुमसे सत्य की शपथ खाकर कहता हूँ, जहाँ वेद, सत्य, दम, शौच, धर्म, लज्जा, श्री, धृति और क्षमा का निवास सहै, वहीं मै। सदा सुखपूर्वक रहता हूँ। तुम्हें वैकर्तन कर्ण के विषय में चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। मैं तुम्हें ऐसा उपाय बताऊँगा, जिससे तुम उसका सामना कर सकोगे। पाण्डुनन्दन! युद्ध में दुर्योधन का भी वध भीमसेन करेंगे। उसके वध का उपाय भी मैं तुम्हें बताऊँगा। शत्रुओं की सेना में यह भयंकर गर्जना का शब्द बढ़ता जा रहा है और तुम्हारे सैनिक दसों दिशाओं में भाग रहे हैं।। कौरवों का निशाना अचूक हो रहा है। वे तुम्हारी सेना का विनाश कर रहे हैं। इधर ये योद्धाओं में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य तुम्हारे सैनिकों को दग्ध किये देते हैं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गतघटोत्‍कचवध पर्व में रात्रियुद्ध के समय श्रीकृष्‍ण का कथनविषयक एक सौ इक्‍यासीवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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