महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 200 श्लोक 115-132

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द्विशततम (200) अध्याय: द्रोणपर्व ( नारायणास्‍त्रमोक्ष पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: द्विशततम अध्याय: श्लोक 115-132 का हिन्दी अनुवाद

उस महासमर में सोने की पीठ वाला भीमसेन का भयंकर धनुष जब खींचा जाता था, तब दूसरे इन्‍द्रधुनष के समान प्रतीत होता था । रणभूमि में अधिक शोभा पाने वाले द्रोणकुमार अश्‍वत्‍थामा को आच्‍छादित करने हुए सैकडों और हजारों बाण भीमसेन के उस धनुष से प्रकट हो रहे थे । माननीय नरेश ! इस प्रकार बाण सूमहों की वर्षा करते हुए उन दोनों के बीच सेनिकल जाने में वायु भी असमर्थ हो गयी थी । महाराज ! तदनन्‍तर अश्‍वत्‍थामा ने भीमसेन के वध की इच्‍छा से तेल में साफ किये हुए स्‍वच्‍छ अग्रभाग वाले बहुत से स्‍वर्णभूषित बाण चलाये । परंतु भीमसेन ने अपनी विशेषता स्‍थापित करते हुए अपने बाणों द्वारा आकाश में ही उन बाणों में से प्रत्‍येक के तीन तीन टुकडे कर डाले और द्रोणपुत्र से कहा – ‘खडा रह, खडा रह’ । फिर कुपित हुए पाण्‍डु पुत्र बलवान् भीमसेन ने द्रोण पुत्र के वध की इच्‍छा से उसके उपर पनुः घोर एवं उग्र बाण वर्षा प्रारम्‍भ कर दी । तब महान अस्‍त्रवेता द्रोणपुत्र् ने अपने अस्‍त्रों की माया से तुरंतही उस बाण वर्षा का निवारण करके भीमसेन का धनुष काट डाला। साथ ही क्रोध में भरकर उसने युध्‍दस्‍थलों में बहुसंख्‍यक बाणों द्वारा इन्‍हें क्षत विक्षत कर ि‍दया । धनुष कट जाने पर बलवान भीमसेन ने द्रोणपुत्र् के रथ पर एक भयंकर रथशक्ति बडे वेग से घुमाकर फेंकी । बडी भारी उल्‍का के समान सहसा अपनी ओर आती हुई उस रथशक्ति को अश्‍वत्‍थामा ने अपने हाथों की फुर्ती दिखाते हुए समरभूमि में तीखे बाणों से काट डाला । इसी बीच में मुस्‍कुराते हुए भीमसेन ने एक सुदढ धनुष लेकर अनेक बाणों से द्रोण पुत्र को बींध डाला । महाराज ! तब अश्‍वत्‍थामा ने झुकी हुई गॉठवाले बाण से भीमसेन के सारथि का ललाट छेद दिया । राजन ! बलवान् द्रोणपुत्र् के द्वारा अत्‍यन्‍त घायल किया हुआ सारथि घोडों की बागडोर छोडकर मूर्छित हो गया । राजेन्‍द्र ! सारथि के मूर्छित हो जाने पर भीमसेन के घोडे सम्‍पूर्ण धनुर्धरों के देखते देखते तुरन्‍त वहॉ से भाग चले । भागे हुए घोडे भीमसेन को समरागण से दूर हटा ले गये, यह देखकर विजयी वीर अश्‍वत्‍थामा ने अत्‍यन्‍त प्रसन्‍न हो अपना विशाल शंख बजाया। तब पाण्‍डुपुत्र भीमसेने और समस्‍त पान्‍चाल भयभीत हो धृष्‍टप्रदुम्‍न का रथ छोडकर चारों दिशाओं में भाग गये । उन भागते हुए सैनिकों पर पीछे से बाण बिखेरते और पाण्‍डव सेना को खदेडते हुए अश्‍वत्‍थामा ने बडे वेग से पीछा किया । राजन ! समरागण में द्रोण पुत्र् के द्वारा मारे जाते हुए समस्‍त राजाओं ने उसके भय से भागकर सम्‍पूर्ण दिशाओं की शरण ली ।

इसी प्रकार श्रीमहाभारत द्रोण पर्व के अन्‍तर्गत नारायणास्‍त्र मोक्ष पर्व में अश्‍वत्‍थामा का पराक्रम विषयक दो सौवॉ अध्‍याय पूरा हुआ ।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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