महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 103 श्लोक 20-40
त्रयधिकशततम (103) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
फिर देवराज इन्द्र ने विधि एवं रहस्य सहित वह कवच मुझे प्रदान किया। यदि दुर्योधन का यह कवच देवताओं द्वारा निर्मित हो अथवा स्वयं ब्रहाजी का बनाया हुआ हो तो भी आज मेरे बाणों द्वारा मारे गये इस दुर्बुद्धि दुर्योधन को यह बचा नहीं सकेगा।
संजय कहते हैं- राजन्। ऐसा कहकर माननीय अर्जुन ने कठोर आवरण का भेदन करने वाले मानवास्त्र से अपने बाणों को अभिमन्त्रित करके धनुष की डोरी को खींचा। धनुष के बीच में रखकर अर्जुन के द्वारा खींचे जाने वाले उन बाणों को अश्रवत्थामा ने सर्वास्त्र घातक अस्त्र के द्वारा काट डाला । ब्रहावादी अश्रवत्थामा के दूर से काट दिये गये उन बाणों को देखकर श्वेतवाहन अर्जुन चकित हो उठे और श्री कृष्ण को सूचित करते हुए बोले। ‘जनार्दन। इस प्रकार अस्त्र का मैं दो बार प्रयोग नहीं कर सकता; क्योंकि ऐसा करने पर यह मुझे ही मार डालेगा और मेरी सेना का भी संहार कर देगा’। राजन् । इसी समय दुर्योधन ने रणक्षेत्र में विषधर सर्प के समान भयंकर नौ-नौ बाणों से श्री कृष्ण और अर्जुन को घायल कर दिया। उसने समर भूमि में बड़ी भारी बाण वर्षा करके श्री कृष्ण और पाण्डुकुमार धनंजय पर पुन: बाणों की झड़ी लगा दी। इससे आप के सैनिक बड़े प्रसन्न हुए । वे बाजे बजाने और सिंहनाद करने लगे। तदनन्तर युद्धस्थल में कुपित हुए अर्जुन अपने मुंह के कोने चाटने लगे। उन्होंने दुर्योधन का कोई भी ऐसा अगड़ नहीं देखा, जो कवच से सुरक्षित न हो। तदनन्तर अर्जुन ने अच्छी तरह छोड़े हुए कालोपम तीखे बाणों द्वारा दुर्योधन के चारों घोड़ों और दोनों पृष्ठ- रक्षकों को मार डाला। तत्पश्रात् पराक्रमी सव्यसाची अर्जुन ने तुरंत ही उसके धनुष और दस्ताने को काट दिया और रथ को टूक-टूक करना आरम्भ किया। उस समय पार्थ ने रथ हीन हुए दुर्योधन की दोनों हथेलियों में दो पैने बाणों द्वारा गहरी चोट पहुंचायी। उपाय को जानने वाले कुन्तीकुमार ने अपने बाणों द्वारा दुर्योधन के नस्त्रों के मांस में प्रहार किया । तब वह वेदना से व्याकुल हो युद्ध भूमि से भाग चला। धनंजय के बाणों से पीडि़त हुए दुर्योधन को भारी विपत्ति में पड़ा हुआ देख श्रेष्ठ धनुर्धर योद्धा उसकी रक्षा के लिये आ पहुंचे। उन्होंने कई हजार रथों, सजे सजाये हाथियों, घोड़ों तथा रोष में भरे पैदल सैनिकों द्वारा अर्जुन को चारों ओर से घेर लिया। उस समय बड़ी भारी बाण वर्षा और जन समुदाय से घिरे हुए अर्जुन, श्री कृष्ण और उनका रथ- इनमें से कोई भी दिखायी नहीं देता था। तब अर्जुन अपने अस्त्र बल से उस कौरव सेना का विनाश करने लगे । वहां सैकड़ों रथ और हाथी अंग-भंग होने के कारण धराशायी हो गये। उन हताहत होने वाले कौरव सैनिकों ने उत्तम रथी अर्जुन को आगे बढ़ने से रोक दिया। वे जयद्रथ से एक कोस की दूरी पर चारों ओर से रथ सेना द्वारा घिरे हुए खड़े थे। तब वृष्णिवीर श्री कृष्ण ने तुरंत ही अर्जुन से कहा ‘तुम जोर-जोर से धनुष खींचो और मैं अपना शख्ड़ बजाउंगा’। यह सुनकर अर्जुन ने बड़े जोर से गाण्डीव धनुष को खींचकर हथेली के चटपट श्ब्द के साथ भारी बाण वर्षा करते हुए शत्रुओं का संहार आरम्भ किया। बलवान् केशव ने उच्चस्वर से पाच्चजन्य शख्ड़ बजाया। उस समय उनकी पलकें धूलधूसरित हो रही थी और उनके मुख पर बहुत सी पसीने की बूंदें छा रही थीं।
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