महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 110 श्लोक 64-84
दशाधिकशततम (110) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
जब मैं तीर्थो में विरता हुआ द्वारका में गया था, वहां भी अर्जुन के जो तुम्हारा भक्तिभाव हैं, उसे मैंने प्रत्यक्ष देखा था। शैनैय ! इस विनाशकारी संकट में पड़े हुए हम लोगों की तुम जिस प्रकार सेवा एंव सहायता कर रहे हों,वैसा सौहार्द मैंने तुम्हारे सिवा दूसरों में नहीं देखा हे। महाबाहु महाधनुर्धर साधव ! वही तुम हम लोगों पर कृपा करने के लिये ही उतम कुल में जन्म-ग्रहण, अर्जुन के प्रति भक्तिभाव, मेवी, गुरुभाव, सौहार्द, पराक्रम, कुलीनता और सत्य के अनुरुप कर्म करो। द्रोणाचार्य द्वारा दी गयी कवच धारणा से सुरक्षितहो दुर्योधन सहसा अर्जुन का सामना करने के लिये गया है। बहुतेरे कौरव महारथियों ने पहले से ही उसका पीछा किया था।। जहां अर्जुन हैं, उस ओर बड़े जोर की गर्जना सुनायी दे रही हैं। अत: दूसरों को मान देनेवाले शैनेय ! तुम्हें शीघ्रतापूर्वक बड़े वेग से वहां जाना चाहिये। भीमसेन और हम लोग अपने सैनिकों के साथ सब प्रकार-से सावधान हैं।यदि द्रोणाचार्य तुम्हारा पीछा करेंगे तो हम सब लोग उन्हें रोकंगे। शैनेय ! वह देखा, उधर युद्धस्थल में सेनाएं भाग रही हैं। रणक्षेत्र में महान्, कोलाहल हो रहा हैं और मोरचे बंदी करके खड़ी हुई सेना में दरारें पड़ रही हैं।। तात ! पूर्णिमा के दिन प्रचण्ड वायु के वेग से विक्षुब्ध हुए समुन्द्र के समान सत्यवाची अर्जुन के द्वारा पीड़ित हुई दुर्योधन की सेना में हलचल मच गयी है। इधर-उधर भागते हुए रथो, मनुष्यों और घोड़ों के द्वारा उड़ी हुई धूल से आच्छादित हुई यह सारी सेना चक्कर काट रही है। शत्रु-वीरों का संहार करनेवाला अर्जुन, नखर (बघनखे) और प्राप्तों द्वारा युद्ध करनेवाले तथा अधिक संख्या में एकत्र हुए सिन्धु सौवीर देश के शूरवीर सैनिकों को से घिर गया है। इस सेना का निवारण किये बिना जयद्रथ को जीतना असम्भव है। ये सभी सैनिक सिन्ध्ुाराज के लिये अपना जीवन न्यौछावर कर चुके हैं। बाण, शक्ति और ध्वजारुपों से सुशोभित तथा घोड़े और हाथियों से भरी हुई कोरवों की इस दुर्जय सेनाको देखों। सुनो, डंको की आवाज हो रही हैं, जोर-जोर से शक्ख बज रहे हैं, वीरों के सिंहनाद तथा रथों के पहियों की घर्घराहट के शब्द सुनायी पड़ रहे हैं। हाथियों के चिग्घाड़ ने की आवाज सुनो। सहस्त्रों पैदल सिपाहियों तथा पृथ्वी को कम्पित हुए दौड़ लगानेवाले घुड़सवारों के शब्द सुन लो। नरव्याघ्र ! अर्जुन के सामने सिन्धुराज की सेना हैं और पीछे द्रोणाचार्य की । इसकी संख्या इतनी अधिक है कि यह देवराज इन्द्र को भी पिड़ीत कर सकती है। इस अनन्त सैन्य समुन्द्र में डूबकर अर्जुन अपने प्राणों का भी परित्याग कर देगा। युद्ध में उसके मारे जाने पर मेरे-जैसा मनुष्य कैसे जीवित रह सकता हैं। युयुधान ! तुम्हारे जीते-जी में सब प्रकार से बड़े भारी संकट में पड़ गया है। निद्रा विजयी पाण्डु कुमार अर्जुन व्याम वर्ण वाला दर्शनीय तरुण है। वह शीघ्रतापूर्वक अस्त्र चलाता और विचित्र रीति से युद्ध करता है। तात ! उस महाबाहु वीर ने सूर्योदय के समय अकेले ही कौरवी सेना में प्रवेश किया था और अब दिन बीतताचला जा रहा है। वार्ष्णैय ! पता नहीं, इस समय तक अर्जुनजीवित है या नहीं । महासमर में जिसके वेग को सहन करना देवताओं के लिये भी असम्भव हैं, कौरवों की वह सेना समुन्द्र के समान विशाल हें, तात ! उस कौरवी सेना सेना में महाबाहु अर्जुन ने अकेले ही प्रवेश किया है।
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