महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 118 श्लोक 1-18
अष्टादशाधिकशततम (118) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
सात्यकि द्वार सुदर्शन का वध
संजय कहते हैं- कुरुवंशशिरोमणे । द्रोणाचार्य तथा कृतवर्मा आदि आपके प्रमुख महारथियों को जीतकर नरवीर सात्यकिने अपने सारथि हंसते हुए कहा। ‘सारथे। इस विजय में आज हम लोग तो निमित्तमात्र हो रहे है। वास्तव में श्री कृष्ण और अर्जुन ने ही हमारे इन शत्रुओं को दग्ध कर दिया है। देवराज के पुत्र नरश्रेष्ठ अर्जुन के मारे हुए सैनिकों को ही हमलोग यहां मार रहे है’ । उस महासमर में सारथि से ऐसा कहकर धनुर्धरशिरोमणि शत्रुसूदन शिनिप्रवर बलवान् सात्यकिने सहसा सब ओर बाणों की वर्षा करते हुए शत्रुओं पर उसी प्रकार आक्रमण किया, जैसे बाज मांस के टुकड़े पर झपटता है। सूर्य की किरणों के समान प्रकाशमान रथियों में श्रेष्ठ नर वीर सात्यकि आपकी सेना में घुसकर चन्द्रमा और शंख के समान शवेतवर्ण वाले घोड़ो द्वारा आगे बढ़ते चले जा रहे थे। उस समय ओर से कोई योद्धा उन्हें रोक न सके। भारत। सात्यकि का पराक्रम असह्म था। अनका धैर्य और बल महान् था। वे इन्द्र के समान प्रभावशाली तथा आकाश में प्रकाशित होने वाले शरत्काल क सूर्य के समान प्रचण्ड तेजस्वी थे। आपके समस्त सैनिक मिलकर भी उन्हें रोक न सके। उस समय अत्यन्त विचित्र युद्ध करने वाले, सुवर्ण-कवच धारी धनुर्धर नृपश्रेष्ठ सुदर्शन ने अपनी ओर आते हुए सात्यकि को अमर्ष भरकर बलपूर्वक रोका।
भारत। उन दोनों वीरों में बड़ा भयंकर संग्राम हुआ। जैसे देवगण वृत्रासुर और इन्द्र के युद्ध की गाथा गाते हैं, उसी प्रकार आपके योद्धाओं तथा सोमकोंने भी उन दोनों के उस युद्ध की भूरि-भूरि प्रशंसा की। राजन् सुदर्शन ने समरागण में सात्वतशिरोमणि सात्वकि पर सैकड़ों सुतीक्ष्ण बाणों द्वारा प्रहार किया; परंतु शिनिप्रवर सात्यकिने उन बाणों को अपने पास आने से पहले ही काट डाला।
इसी प्रकार इन्द्र के समान पराक्रमी सात्यकि भी सुदर्शन पर जिन-जिन बाणों का प्रहार करते थे, श्रेष्ठ रथ पर बैठे हुए सुदर्शन भी अपने उत्तम बाणों द्वारा उन सबके दो-दो तीन तीन टुकड़े कर देते थे। उस समय सात्यकि के वेगशाली बाणों द्वारा अपने चलाये हुए बाणों को नष्ट हुआ देख प्रचण्ड तेजस्वी राजा सुदर्शन ने क्रोध से उन्हें जला डालने की इच्छा रखते हुए से सुवर्ण जटित विचित्र बाणों का उन पर प्रहार आरम्भ किया। फिर उन्होंने अग्रि के समान तेजस्वी तथा कान तक खींचकर छोड़े हुए सुन्दर पंखवाले तीन तीखे बाणों से सात्यकि को बींध दिया। वे बाण सात्यकि का कवच विदीर्ण करके उनके शरीर में समा गये।
तत्पश्चात् उन राजकुमार सुदर्शन ने अन्य चार तेजस्वी बाणों का संधान करके उनके द्वारा चांदी के समान चमकने वाले सात्कि के उन चारों घोड़ों को भी बलपूर्वक घायल कर दिया। सुदर्शन के द्वारा घायल होने पर इन्द्र के समान बलवान् और वेगशाली शिनिपौत्र सात्यकिने अपने सुतीक्षण बाण समूहों से सुदर्शन के अश्वों का शीघ्र ही संहार करके उच्चस्वर से सिंहनाद किया। राजन् तत्पश्चात् इन्द्र के ब्रजतुल्य भल्ल से उनके सारथि का सिर काटकर शिनिवंश के प्रमुख वीर सात्यकिने कालाग्रि के समान तेजस्वी छुरे से सुदर्शन के पूर्ण चन्द्रमा के समान प्रकाशमान शोभाशाली कुण्डमण्डित मस्तक को भी धड़ से काट गिराया। ठीक उसी प्रकार, जैसे पूर्वकाल में ब्रजधारी इन्द्र ने समरागण में अत्यन्त बलवान् बलासुर का सिर बलपूर्वक काट लिया था। नरेश्वर। राजा के पुत्र एवं पौत्र सुदर्शन का रणभूमि में वध करके यदुकुतिलक देवेन्द्र सदृश पराक्रमी वेगशाली महामनस्वी सात्यकि अत्यन्त प्रसन्न होकर विजयश्री से सुशोभित होने लगे। राजन् । तदनन्तर लोगों को आशचर्यचकित करने की इच्छावाले नरवीर सात्यकि अपने सुन्दर अश्वों से जुते हुए रथ के द्वारा बाण समूहों से आपकी सेना को हटाते हुए उसी मार्ग से चल दिये, जिससे अर्जुन गये थे। उनके उस आश्चर्यजनक उत्तम पराक्रमी की वहां एकत्र हुए समस्त योद्धाओं ने बड़ी प्रशंसा की। सात्यकि अपने बाणों के पथ में आये हुए शत्रुओं को उन बाणों द्वारा अग्रिदेव- के समान दग्ध कर रहे थे।
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