महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 45 श्लोक 1-16
पच्चचत्वारिश (45) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
अभिमन्यु के द्वारा सत्यश्रवा, क्षत्रिय समूह, रूक्मरथ तथा उसके मित्रगणों और सैकड़ों राजकुमारों का वध और दुर्योधन की पराजय
संजय कहते है – राजन् ! मृत्युकाल उपस्थित होने पर जैसे यमराज समस्त प्राणियों के प्राण हर लेते हैं, उसी प्रकार अर्जुनकुमार अभिमन्यु भी वीरों की आयु का अपहरण करते हुए उनके लिये यमराज ही हो गये थे । इन्द्रकुमार अर्जुन का बलवान् पुत्र अभिमन्यु इन्द्र के समान पराक्रमी था । वह उस समय सारे व्यूह का मन्थन करता दिखायी देता था । राजेन्द्र ! क्षत्रिय शिरोमणियों के लिये यमराज के समान अभिमन्यु ने उस सेना में प्रवेश करते ही जैसे उनमत्त वयाघ्र हरिण को दबोच लेता है, उसी प्रकार सत्यश्रवा को ले बैठा । सत्यश्रवा के मारे जाने पर उन सभी महारथियों ने प्रचुर अस्त्र–शस्त्र लेकर बड़ी उतावली के साथ अभिमन्यु पर आक्रमण किया । वे सभी क्षत्रिय शिरोमणि पहले मै, पहले मै इस प्रकार परस्पर होड़ लगाते हुए अर्जुन कुमार को मार डालने की इच्छा से आगे बढ़े । उस समय धावा करने वाले क्षत्रियो की उन आगे बढ़ती हुई सेनाओं को अभिमन्यु ने उसी प्रकार कालका ग्रास बना लिया, जैसे महासागर में तिमि नामक महामत्स्य छोटे-छोटे मत्स्यों को निगल जाता है । युद्ध से भागनेवाले जो कोई शूरवीर अभिमन्यु के पास गये, वे फिर नही लौटे । जैसे समुद्र मे मिली हुई नदियॉ फिर वहां से लौट नही पाती है । जिसका समुद्र मार्ग भूल गया हो, जो वायु के वेग से भयाक्रान्त हो रही हो तथा जिसे किसी बहुत बड़े ग्राह ने पकड़ लिया हो-ऐसी नौका जैसे डगमगाने लगती है, उसी प्रकार वह सेना अभिमन्यु के भय स कांप रही थी । इसी समय मद्रराज का बलवान् पुत्र रूक्मरथ आकर अपनी डरी हुई सेना को आश्वासन देता हुआ निर्भय होकर बोला । शूरवीरों ! तुम्हें डरने की कोई आवश्यकता नही । यह अभिमन्यु मेरे रहते कुछ भी नही है । मैं अभी इसे जीते-जी पकड लॅूगा । इसमें संशय नही है । ऐसा कहकर पराक्रमी रूक्मरथ सुन्दर सजे-सजाये तेजस्वी रथ पर आरूढ़ हो सुभद्राकुमार अभिमन्यु की ओर दौड़ा । उसने अभिमन्यु की छाती में तीन बाण मारकर सिंहनाद किया । फिर तीन बाण दाहिनी और तीन तीखे बाण बायीं भुजा में मारे । तब अर्जुनकुमार ने रूक्मरथ का धनुष काटकर उसकी बायी-दायी भुजाओं को तथा सुन्दर नेत्र एवं भौंहो से सुशोभित मस्तक को भी तुरंत ही पृथ्वीपर काट गिराया । राजन् ! राजा शल्य के अभिमानी पुत्र रूक्मरथ को जो, अभिमन्य को जीते जी पकड़ना चाहता था, यशस्वी सुभद्राकुमार के द्वारा मारा गया देख शल्यपुत्र के बहुत से मित्र राजकुमार, जो प्रहार करने में कुशल और युद्ध में उन्मक्त होकर लड़ने वाले थे, अर्जुनकुमार को चारो ओर से घेरकर बाणों की वर्षा करने लगे । उनके ध्वज सुवर्ण के बने हुए थे, वे महाबली वीर चार हाथ के धनुष खींच रहे थे ।
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