महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 45 श्लोक 17-30
पच्चचत्वारिश (45) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
शिक्षा और बल से सम्पन्न, तरूण अवस्थावाले, अत्यन्त अमर्षशील और शूरवीर राजकुमारों द्वारा, किसी से परास्त न होने वाले शौर्य सम्पन्न सुभद्राकुमार को अकेले ही समरागण में बाणसमूहों से आच्छादित होते देख राजा दुर्योधन को बड़ा हर्ष हुआ । उसने यह मान लिया कि अब अभिमन्यु यमराज के लोक मे पहॅुच गया । उन राजकुमारों ने सोने के पंखवाले नाना प्रकार के चिन्हों से सुशोभित और पैने बाणों द्वारा अर्जुनकुमार अभिमन्यु को पलक मारते-मारते अदृश्य कर दिया । आर्य ! सारथि, घोड़े और ध्वज सहित अभिमन्यु के उस रथ को मैने उसी प्रकार बाणों से व्याप्त देखा, जैसे साही (सेह) का शरीर कांटो से भरा रहता है । भारत ! बाणों से गहरी चोट खाकर अभिमन्यु अकुशसे पीडित हुए गजराज की भॉति कुपित हो उठा । उसने गान्धर्वास्त्र का प्रयोग किया और रथमाया (रथयुद्धकी शिक्षामें निपुणता) प्रकट की । अर्जुन ने तपस्या करके तुम्बुरू आदि गन्धर्वो से जो अस्त्र प्राप्त किया था, उसी से अभिमन्यु ने अपने शत्रुओं को मोहित कर दिया । राजन् ! वह शीघ्रतापूर्वक अस्त्र संचालन का कौशल दिखाता हुआ युद्ध में अलातचक्र की भॉति एक, शत तथा सहस्त्रों रूपों में दृष्टिगोचर होता था । महाराज ! शत्रुओं को संताप देनेवाले अभिमन्यु ने रथ-चर्या तथा अस्त्रों की माया से मोहित करके राजाओं के शरीरों के सौ-सौ टुकड़े कर दिये । राजन् ! उस युद्धस्थल में उसके पैने बाणों से प्रेरित हुए प्राणधारियों के शरीर तो पृथ्वीपर गिर पड़े, परंतु प्राण परलोक में जा पहॅुचे । अर्जुनकुमार ने अपने तीखे बाणों द्वारा उनके धनुष, घोड़े, सारथि, ध्वज, अगदयुक्त बाहु तथा मस्तक भी काट डाले । जैसे पॉच वर्षों का लगाया हुआ आम का बाग, जो फल देने योग्य हो गया हो, काट दिया जाय, उसी प्रकार सैकड़ों राजकुमारोंको सुभद्राकुमार ने वहां मार गिराया । क्रोध में भरे हुए विषधर सर्पो के समान भयंकर तथा सुख भोगने के योग्य उन सुकुमार राजकुमारों को एकमात्र अभिमन्यु द्वारा मारा गया देख दुर्योधन भयभीत हो गया। रथियों, हाथियों, घोड़ों और पैदलों को भी अभिमन्यु रूपी समुद्र में डूबते देख अमर्ष में भरे हुए दुर्योधन ने शीघ्र ही उस पर धावा किया । उन दोनों में एक क्षण तक अधूरा सा युद्ध हुआ । इतने ही में आपका पुत्र दुर्योधन सैकड़ों बाणों से आहत होकर वहां से भाग गया ।
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