महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 85 श्लोक 18-38

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पंचाशीतितम (85) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व:पंचाशीतितम अध्याय: श्लोक 18-38 का हिन्दी अनुवाद


वेद-विद्या के भण्डार जिस सोमदत्तपुत्र भूरिश्रवा के यहां सातों यज्ञों का अनुशष्‍ठान करने वाले याजक सदा रहा करते थे, अब वहां उन ब्राहणों की आवाज नही सुनायी देती है। द्रोणचार्य के घर में निरन्तर धनुष प्रत्यच्शा का घोष, वेदमन्त्रों के उच्चारण की ध्वनि तथा तोमर, तलवार एवं रथ के शब्द गूंजते रहते थे; परंतु अब मैं वहां वह शब्द नही सुन रहा हूं। नाना प्रदेशो से आये हुए लोगों के गाये हुए गीतों का और बजाये हुए बाजों का भी जो महान् शब्द श्रवण गोचर होता था, वह अब नही सुनायी देता है। संजय। जब अपनी महिमा से कमी व्युप्त न होने वाले भगवान् जनार्दन समस्त प्राणियों पर कृपा करने के लिये शान्ति स्थापित करने की इच्छा लेकर उपप्लव्य से हस्तिनापुर पधारे थे,उस समय मैनें अपने मूर्ख पुत्र दुर्योधन से इस प्रकार कहा था-। बेटा। भगवान् श्रीकृष्ण को साधन बनाकर पाण्डवों के साथ संधि कर लो । मैं इसी को समयोचित कर्तव्य मानता हुं। दुर्योधन । तुम इसे टालो मत । परंतु उसने समपूर्ण धनुर्धरो में श्रेष्‍ठ भगवान् श्रीकृष्ण - की बात मानने से इनकार कर दिया। यद्यपि वे अनुनय-पूर्ण वचन बोलते थे, तथापि दुर्योधन ने अन्यायवश उन्हें नही माना। कर्ण, दुःशासन और खोटी बुद्धिवाले शकुनि के मत में आकर मेरे कुल का नाश करने वाले दुर्योधन ने महाबाहु श्रीकृष्ण का तिरस्कार कर दिया। फिर तो काल से आकृष्‍ट हुए दुर्बुद्धि दुर्योधन- ने मुझे छोडकर दुःशासन और कर्ण इन्ही दोनो के मत का अनुसरण किया। मैं जूआ खेलना नही चाहता था, विदुर भी उसकी प्रशंसा नही करते थे, सिंधुराज जयद्रथ भी जूआ नही चाहते थे और भीष्‍म जी भी द्यूत की अभिलाषा नही रखते थे । संजय। शल्य, भूरिश्रवा, पुरूषमित्र, जय , अश्वत्थामा, कृपाचार्य और द्रोणाचार्य भी जूआ होने देना नही चाहते थे। यदि बेटा दुर्योधन इन सबकी राय लेकर चलता तो भाई-बन्धु, मित्र और सुहदों सहित दीर्घकालतक नीरोग एवं स्वस्थ रहकर जीवन धारण करता । पाण्डव सरल, मधुरभाषी, भाई-बन्धुओ के प्रति प्रिय वचन बोलने वाले, कुलीन, सम्मानित और विद्वान् है; अतः उन्हे सुख की प्राप्ति होगी।धर्म की अपेक्षा रखने वाला मनुष्‍य सदा सर्वत्र सुख का भागी होता है।मृत्यु के पश्‍चात् भी उसे कल्याण एवं प्रसन्नता प्राप्त होती है। पाण्डव पृथ्वी का राज्य भोगने में और उसे प्राप्त करने में भी समर्थ है। यह समुद्रपर्यन्त पृथ्वी उनके बाप-दादों की भी है। तात । पाण्डवों को यदि आदेश दिया जाये तो वे उसे मानकर सदा धर्ममार्ग पर ही स्थिर रहेंगे। मेरे अनेक ऐसे भाई-बन्धु है, जिनकी बात पाण्डव सुनेंगे। वत्स। शल्‍य, सोमदत्त महात्मा भीष्‍म, द्रोणाचार्य , विकर्ण, बाहीक, कृपाचार्य तथा अन्य जो बडे-बूढे़ महामना भरतवंशी है। , वे यदि तुम्हारे लिये उनसे कुछ कहेगें तो पाण्डव उनकी बात अवश्‍य मानेंगे। बेटा दुर्योधन। तुम उपर्युक्त व्यक्तियों में से किसको ऐसा मानते हो जो पाण्डवों के विषय में इसके विपरीत कह सके। श्रीकृष्ण कभी धर्म का परित्याग नही कर सकते और समस्त पाण्डव उन्ही के मार्ग का अनुसरण करने वाले है। मेरे कहने पर भी मेरे धर्मयुक्त वचन की अवहेलना नही करेगे; क्याकि वीर पाण्डव धर्मात्मा है। सूत । इस प्रकार विलाप करते हुए मैनें अपने पुत्र दुर्योधन से बहुत कुछ कहा, परंतु उस मुर्ख ने मेरी एक नही सुनी । अतः मै समझता हूं कि काल चक्र ने पलटा खाया है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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