महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 85 श्लोक 1-17

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पंचाशीतितम (85) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व:पंचाशीतितम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


धृतराष्‍ट्र का विलाप धृतराष्‍ट्र ने कहा-संजय। अभिमन्यु के सारे जाने पर दुःख और शोक में डूबे हुए पाण्डवों ने सवेरा होने पर क्या किया1 तथा मेरे पक्षववाल ने योद्धाओ में से किन लोगों ने युद्ध किया। सव्यसाची अर्जुन के पराक्रम को जानते हुए भी मेरे पक्षवाले कौरव योद्धा उनका अपराध करके कैसे निर्भय रह सके ? यह बताओ! पुत्रशोक से संतप्त हो क्रोध में भरे हुए प्राणान्तकारी मृत्यु के समान आते हुए पुरूषसिंह अर्जुन की ओर मेरे पुत्र युद्ध में कैसे देख सके । जिनकी ध्वजा में कपिराज हनुमान् विराजमान है, उन पुत्रवियोग से व्यथित हुए अर्जुन को युद्धस्थल में अपने विषाल धनुष की टंकार करते देख मेरे पुत्रों ने क्या किया। संजय। संग्राम भूमि में दुर्योधन पर क्या बीता है, इन दिनों मैने महान् विलाप की ध्वनि सुनी हैं। आमोद-प्रमोद के शब्द मेरे कानों में नही पडे है। पहले सिंधुराज के शिविर में जो मन को प्रिय लगने वाले और कानों को सुख देने वाले शब्द होते रहते थे, वे सब अब नहीं सुनायी पडते हैं। मेरे पुत्रों के शिविर में अब स्तुति करने वो सूर्तो, मागधों एवं नर्तको शब्द सर्वथा नही सुनायी पडते है। जहां मेरे मान निरन्तर स्वजनों के आनन्द-कोलाहल से गूंजते रहते थे, वही आज मैं अपने दीन दुखी पुत्रों के द्वारा उच्चरित वह हर्षसूचक शब्द नही सुन रहा हूं। तात संजय। पहले मैं यथार्थ धैर्यशाली सोमदत्त के भवन में बैठा हुआ। उत्तम शब्द सुना करता था।परंतु आप पुण्यहीन मैं अपने पुत्रों के घर को उत्साह-षून्य एवं आर्तनाद से बूंजता हुआ देख रहा हूं। विविंशति दुर्मुख, चित्रसेन, विकर्ण तथा मेरे अन्य पुत्रों के घरों में अब पूर्ववत् आनन्दित ध्वनि नही सुनी जाती है।सूत संजय । मेरे पुत्रो परम आश्रय जिस महाधनुर्धर द्रोणपुत्र अश्वत्थामा की ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्‍य सभी जातियो के विषय उपासना निकट रहकर सेवा करते रहे है।, जो वितण्डावाद, भाषण, पारस्परिक बातचीत, द्रुतस्वर में बजाये हुए वाद्यों के शब्दों तथा भांति-भांति के अभीष्‍ट गीतों -से दिन -रात मनबहलाया करता था, जिसके पास बहुत-से कौरव, पाण्डव औ सातवतवंशी वीर बैठा करते थे, उस अश्वत्थामा के घर में आज पहले के समान हर्षसूचक शब्द नहीं हो रहा है। महाधनुर्धर द्रोणपुत्र की सेवा में जो गायक और नर्तक अधिक उपस्थित होते थे,उनकी ध्वनि अब नहीं सुनायी देती है। विन्द और अनुविनद के शिविर में संध्या के समय जो महान् शब्द सुनायी पडता था, वह अब नही सुनने में आता है। तात सदा अनन्दित रहने वाले के कयो के भवनों में झुंड के झुंड नर्तको का ताल स्वर के साथ गीता का जो महान् शब्द सुनयी पडता था, वह अब नही सुना जाता है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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