महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 100 श्लोक 21-40
शततम (100) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
उसके द्वारा युद्ध में खदेड़े हुए आपके सैनिक मेघों की गर्जना के समान घोर आर्तनाद करने लगे।
भरतवंशी नरेश ! पूर्णिमा के दिन वायु के थपेड़ों से उद्वेलित हुए समुद्र की गर्जना के समान आपकी सेना का वह भयंकर चीत्कार सुनकर उस समय दुर्योधन राक्षस ऋृष्यश्रृडंगपुत्र अलम्बुष से इस प्रकार कहा - महाबाहो ! यह अर्जुन का पुत्र द्वितीय अर्जुन के समान पराक्रमी है। जैसे वृत्रासुर देवताओं की सेना को मार भगाता था, उसी प्रकार वह भी क्रोधपूर्वक मेरी सेना को खदेड़ रहा है। मैं युद्धस्थल में सम्पूर्ण विद्याओं के पारंगत तथा राक्षसों में सर्वश्रेष्ठ तुम जैसे वीर को छोड़कर दूसरे किसी को ऐसा नहीं देखता, जो उस रोग की सबसे उत्तम दवा हो सके। अतः तुम तुरंत जाकर युद्ध के मैदान में वीर सुभद्रा कुमार का वध करो और हमलोग भीष्म तथा द्रोणाचार्य को आगे करके अर्जुन को मार डालेंगे। आपके पुत्र दुर्योधन के ऐसा कहने पर उसकी आज्ञा से बलवान् एवं प्रतापी राक्षसराज अलम्बुष तुरंत ही वर्षाकाल के मेघ की भाँति जोर-जोर से गर्जना करता हुआ समरभूमि में गया। राजन् ! उसके महान् गर्जन से वायु से विक्षुब्ध हुए समुद्र के समान पाण्डवों की विशाल सेना में सब ओर हलच लमच गयी। महाराज ! उसके सिंहनाद से भयभीत हो बहुत से सैनिक अपने प्यारे प्राणों को त्याग कर पृथ्वी पर गिर पडे़। अभिमन्यु भी हर्ष और उत्साह में भरकर हाथ में धनुष बाण लिये रथ की बैठक में नृत्य सा करता हुआ उस राक्षस की ओर दौड़ा। तत्पश्चात् क्रोध में भरा हुआ वह राक्षस युद्ध में अभिमन्यु के समीप पहुँचकर पास ही खड़ी हुई उसकी सेना को भगाने लगा।
इस प्रकार पीडि़त हुई पाण्डवों की विशाल वाहिनी पर उस राक्षस ने युद्ध में उसी प्रकार धावा किया, जैसे बल नामक दैत्य ने देव सेना पर आक्रमण किया था। आर्य ! युद्धस्थल में भयंकर राक्षस के द्वारा मारी जाती हुई उस सेना का महान् संहार होने लगा। उस समय राक्षस ने अपना पराक्रम दिखाते हुए रणक्षेत्र में सहस्त्रों बाणों द्वारा पाण्डवों की उस विशाल सेना को खदेड़ना आरम्भ किया। उस घोर राक्षस के द्वारा उस प्रकार मारी जाती हुई वह पाण्डव सेना भय के मारे रणभूमि से भाग चली। जैसे हाथी कमलमण्डित सरोवर को मथ डालता है, उसी प्रकार रणभूमि में पाण्डव सेना को रौंदकर अलम्बुष ने महाबली द्रौपदी पुत्रों पर धावा किया। द्रौपदी के पाँचों पुत्र महान् धनुर्धर तथा प्रहार करने में कुशल थे। उन्होंने संग्राम भूमि में कुपित हो उस राक्षस पर उसी प्रकार धावा किया, मानो पाँच ग्रह सूर्यदेव पर आक्रमण कर रहे हो। उस समय उन पराक्रमी द्रौपदी पुत्रों द्वारा वह श्रेष्ठ राक्षस उसी प्रकार पीडि़त होने लगा, जैसे भयानक प्रलयकाल आने पर चन्द्रमा पाँच ग्रहों द्वारा पीडि़त होते है।
तत्पश्चात महाबली प्रतिविन्ध्य ने पूर्णतः लोहे के बने हुए अप्रतिहत धारवाले शीध्रगामी तीखे बाणों द्वारा उस राक्षस को विदीर्ण कर डाला।
वे बाण उसके कवच को छेदकर शरीर में धँस गये। उनके द्वारा राक्षसराज अलम्बुष की वैसी ही शोभा हुई, मानो महान मेघ सूर्य की किरणों से ओत प्रोत हो रहा हो।
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