महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 100 श्लोक 41-54
शततम (100) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
राजन् ! शरीर में धँसे हुए उन सुवर्णभूषित बाणों द्वारा राक्षस अलम्बुष चमकीले शिखरों वाले पर्वत की भाँति सुशोभित हुआ। तदनन्तर उन पाँचों भाइयों ने उस महासमर में सुवर्ण भूषित तीक्ष्ण बाणों द्वारा राक्षसराज अलम्बुष को क्षत-विक्षत कर दिया। राजन् ! क्रोध में भरे हुए सर्पों के समान उन घोर सायकों द्वारा अत्यन्त घायल हुआ अलम्बुष अडंकुशविद्ध गजराज की भाँति कुपित हो उठा। महाराज ! उन महारथियों के बाणों से अत्यन्त आहत और पीडित हो अलम्बुष दो घड़ी तक भारी मोह (मूर्छा) में डूबा रहा। तदन्तर होश में आकर वह दूने क्रोध से जल उठा। फिर उसने उनके सायकों, ध्वजों और धनुषों के टुकड़े-टुकड़े कर डालें। इसके बाद रथ की बैठ में नृत्य सा करते हुए महारथी अलम्बुष ने मुसकराते हुए उनमें से एक एक को पाँच पाँच बाणों से घायल कर दिया। फिर अत्यन्त उतावली के साथ रोषावेश में भरे हुए उस महाबली राक्षस ने कुपित हो उन महामनस्वी पाँचों भाईयों के घोड़ों और सारथियों को भी मार डाला।
इसके बाद पुनः कुपित हो भाँति-भाँति के सैकड़ों और हजारों तीखे बाणों द्वारा उन सबको गहरी चोट पहुँचायी। उन महाधनुर्धर वीरों को रथहीन करके युद्ध में उन्हें मार डालने की इच्छा से निशाचर अलम्बुष ने बड़े वेग से उन पर धावा किया। उन पाँचों भाईयों को रणक्षेत्र में दुरात्मा राक्षस के द्वारा अत्यन्त पीडि़त देख अर्जुन कुमार अभिमन्यु ने पुनः उसके ऊपर आक्रमण किया। फिर उन दोनों में वृत्रासुर और इन्द्र के समान भयंकर युद्ध होने लगा। आपके और पाण्डव पक्ष के सभी महारथी उस युद्ध को देखने लगे। महाराज ! उस महायु़द्ध में क्रोध से उद्दीत हो आँखें लाल-लाल करके एक दूसरे से भिड़े हुए वे दोनों महाबली वीर युद्ध में काल और अग्नि के समान परस्पर देखने लगे। उनका वह घोर संग्राम अत्यन्त कटु परिणाम को प्रकट करने वाला था। पूर्वकाल में देवासुर संग्राम के अवसर पर इन्द्र और शम्बरासुर जैसा भयंकर युद्ध हुआ था, वैसा ही उनमें भी हुआ।
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