महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 104 श्लोक 21-38

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चतुरधिकशततम (104) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: चतुरधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-38 का हिन्दी अनुवाद

तब शत्रुवीरों का संहार करने वाले सुभद्राकुमार अभिमन्यु ने चित्रसेन के चारों घोड़ों को मारकर नौ बाणों से उसके सारथियों को भी नष्ट कर दिया। तत्पश्चात् बड़े जोर से सिंहनाद किया। प्रजानाथ ! घोड़ों के मारे जाने पर महारथी चित्रसेन तुरंत ही रथ से कूद पड़े और दुर्मख के रथ पर आरूढ़ हो गये। पराक्रमी द्रोणाचार्य ने भी झुकी हुई गाँठवाले बाणों से द्रुपद को घायल करके बड़ी उतावली के साथ उनके सारथि को भी बींध डाला।
इस प्रकार युद्ध के मुहाने पर द्रोणाचार्य से पीडि़त हो राजा दु्रपद पूर्व वैर का स्मरण करते हुए शीघ्रगामी घोड़ों द्वारा वहाँ से भाग गये। भीमसेन ने दो ही घड़ी में सारी सेना के देखते-देखते राजा बाहीक को घोड़े, सारथि तथा रथ से शून्य कर दिया। महाराज ! नरश्रेष्ठ बाहीक बड़ी घबराहट में पड़ गये। उनका जीवन अत्यन्त संशय में पड़ गया। उस अवस्था में वे रथ से कूदकर शीघ्र ही उस महायुद्ध में लक्ष्मण के रथ पर आरूढ़ हो गये। राजन् ! दूसरी ओर उस महायुद्ध में सात्यकि ने कृतवर्मा को रोककर नाना प्रकार के बाणों की वर्षा करते हुए पितामह भीष्म पर धावा किया। उन्होंने अपने विशाल धनुष की टंकार फैलाते तथा रथ की बैठक में नृत्य करते हुए से पंखयुक्त साठ तीखे बाणों द्वारा भरतवंशी पितामह भीष्म को घायल कर दिया। पितामह ने सात्यकि पर लोहे की बनी हुई एक विशाल शक्ति चलायी, जो सुवर्णजटित, अत्यन्त वेगशालिनी तथा सर्पिणी के समान आकार वाली एवं सुन्दर थी।
उस अत्यन्त दुर्जय मृत्युस्वरूपा शक्ति को सहसा आती देख महायशस्वी सात्यकि ने अपनी फुर्ती के कारण उसको असफल कर दिया। वह परम भयंकर शक्ति सात्यकि तक न पहुँचकर अत्यन्त तेजस्विनी बड़ी भारी उल्का के समान पृथ्वी पर गिर पड़ी। राजन् ! तब सात्यकि ने भी अपनी सुनहरी प्रभावशाली शक्ति लेकर उसे भीष्म के रथ पर बड़े वेग से चलाया उस महासमर में सात्यकि की भुजाओं के वेग से चलायी हुई वह शक्ति अत्यन्त वेगपूर्वक भीष्म की ओर चली, मानो कालरात्रि मनुष्य की ओर जा रही हो। परंतु भरतवंशी भीष्म ने अपने अत्यन्त तीखे दो क्षुरप्रों से उस सहसा आती हुई शक्ति को दो जगह से काट दिया। वह छिन्न-भिन्न होकर पृथ्वी पर गिर पड़ी। शक्ति को काटकर हँसते हुए शत्रुसूदन गंगनन्दन भीष्म ने कुपित हो सात्यकि की छाती में नौ बाण मारे। पाण्डु के भाई महाराज धृतराष्ट्र ! उस समय मधुवंशी सात्यकि को बचाने के लिये पाण्डवों ने रथ, घोड़े और हाथियों की सेना के साथ आकर युद्धभूमि में भीष्म को चारों ओर से घेर लिया। तत्पश्चात् युद्ध में विजय की अभिलाषा रखने वाले कौरवों तथा पाण्डवों में परस्पर घोर युद्ध हुआ, जो रोंगटे खड़े कर देने वाला था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में सात्यकिका युद्धविषयक एक सौ चारवाँ अध्याय पूरा हुआ।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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