महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 105 श्लोक 1-15

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पच्चाधिकशततम (105) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: पच्चाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

दुर्योधन का दुःशासन को भीष्म की रक्षा के लिये आदेश, युधिष्ठिर और नकुल-सहदेव के द्वारा शकुनि की घुड़सवार सेना की पराजय तथा शल्य के साथ उन सबका युद्व संजय कहते है- महाराज ! ग्रीष्म ऋतु के अन्त में (वर्षारम्भ होने पर) जैसे मेघ आकाश में सूर्यदेव को ढक लेते है, उसी प्रकार पाण्डवों ने भी युद्धभूमि में क्रुद्व हुए भीष्म को सब ओर से घेर लिया है। यह देखकर आपके पुत्र दुर्याेधन ने दुःशासन से कहा- भरतश्रेष्ठ !ये शूरवीरों का नाश करने वाले महाधनुर्धर शौर्यसम्पन्न भीष्म पराक्रमी पाण्डवों द्वारा चारों ओर से घेर लिये गये है। वीर ! तुम्हें उन महात्मा भीष्म की रक्षा करनी चाहिये। युद्ध में सुरक्षित रहने पर हमारे पितामह भीष्म समरांगण में विजय के लिये प्रयत्न करने वाले पाण्डवों सहित पान्चालों का संहार कर डालेंगे। अतः इस अवसर पर मैं भीष्म की रक्षा को ही प्रधान कार्य समझता हूँ; क्योंकि ये महावती महाधनुर्धर भीष्म हम लोगों के रक्षक है।
अतः तुम सम्पूर्ण सेना के साथ समरभूमि में दुष्कर कर्म करने वाले पितामह भीष्म को चारों ओर से घेरकर उनकी रक्षा करों। दुर्योधन के ऐसा कहने पर आपका पुत्र दुःशासन समरभूमि में अपनी विशाल सेना के साथ जा भीष्म को सब ओर से घेरकर खड़ा हो गया और बड़े यत्न से सावधान रहकर उनकी रक्षा करने लगा। तदन्तर सुबलपुत्र शकुनि एक लाख घुड़सवारों की सेना के साथ युद्ध के लिये आ पहुँचा। वे सभी सैनिक अपने हाथों में चमकते हुए प्रास, ऋष्टि और तोमर लिये हुए थे। सबको अपने शौर्य का अभिमान था। सभी बलवान्, सुन्दर अस्त्र विद्या की शिक्षा पाये हुए युद्ध कुशल श्रेष्ठ पैदल सिपाहियों की भी बहुत बड़ी संख्या उन घुड़सवारों के साथ थी। इस प्रकार युद्धभूमि में शोभा पाने वाले कई हजार योद्धाओं से घिरा हुआ शकुनि कवच धारण करके युद्ध के लिये ही वहाँ खड़ा हो गया। राजन्! शकुनि नकुल, सहदेव तथा धर्मराज युधिष्ठिर-इन तीनों श्रेष्ठ पुरूषों को सब ओर से घेरकर इन्हे आगे बढ़ने से रोकने लगा।
तदन्तर राजा दुर्योधन ने पाण्ड़वों की प्रगति को रोकने के लिए दस हजार घुड़सवार सैनिक और भेजे। गरूड के समान अत्यन्त वेगशाली वे अश्व रणभूमि में यथास्थान पहुँच गऐ । जैसे मरूद्रणों से महातेजस्वी इन्द्र की शोभा होती है, उसी प्रकार उन अत्यन्त वेगशाली अश्वों के द्वारा अत्यन्त तेजस्वी सुबलपुत्र शकुनि सुशोभित होने लगा। राजन !उन घोंडो़ं की टाप से आहत होकर यह पृथ्वी काँपने और भयंकर शब्द करने लगी। उस समय घोंडों की टापों का महान् शब्द सब ओर उसी प्रकार सुनायी देने लगा, मानो पर्वत पर जलते हुए बडे़-बडें बासों के जगंल मे उनसे पोरों के फटने का शब्द हो रहा हो। वहाँ घोडों के उछलने-कुदने से जो बड़े जोर की धुलि उपर को उठी, उसने मानो सूर्य के रथ के समीप पहुच कर उन्हे आच्छादित कर दिया। उन वेगशाली अश्वों ने पाण्डव- सेना को उसी प्रकार श्रुब्ध कर दिया, जैसे महान् वेग से उडनें वाले हंस किसी विशाल जलाशय में पड़कर उसे मथ ड़ालते है। वायु के समान वेगवाले उन अश्वों ने पाण्डव सेना को व्याकुल कर दिया। उनके हिनहिनाने की आवाज से दबकर दूसरा कोई शब्द नहीं सुनायी पड़ता था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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