महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 12 श्लोक 43-52
द्वादश (12) अध्याय: भीष्म पर्व (भूमि पर्व)
कुरूश्रेष्ठ! उनकी परिधि या मण्डल का विस्तार तैंतीस हजार योजन बताया गया हैं और महामना शीतरश्मि चन्द्रमा का वैपूल्यगत विस्तार (मोटाई) उनसठ सौ योजन हैं। कुरूनन्दन! सूर्य का व्यासगत विस्तार दस हजार योजन है और उनकी परिधि या मण्डल का विस्तार तीस हजार योजन है तथा उनकी विपुलता अठावन सौ योजन की है। अनघ! इस प्रकार शीघ्रगामी परम उदार भगवान् सूर्य के त्रिविध विस्तार का वर्णन सुना जाता हैं। भारत! यहां सूर्य का प्रमाण बताया गया, इन दोनों से अधिक विस्तार रखने के कारण राहु यथासमय इन सूर्य और चन्द्रमा को आच्छादित कर लेता हैं। महाराज! आपके प्रश्न के अनुसार शास्त्रदृष्टि से ग्रहों के विषय में संक्षेप से बताया गया। ये सारी बातें मैंने आपके सामने यथार्थ रूप से उपस्थित की हैं। अत: आप शान्ति धारण कीजिये। इस जगत् का स्वरूप कैसा है और इसका निर्माण किस प्रकार हुआ है, ये सब बातें मैंने शास्त्रोक्त रीति से बतायी हैं; अत: कूरूनन्दन! आप अपने पुत्र दुर्योधन की ओर से निश्चिन्त रहिये।
भरतश्रेष्ठ! जो राजा इस भूमिपर्व को मनोयोगपूर्वक सुनता हैं, वह श्रीसम्पन्न, सफलमनोरथ तथा श्रेष्ठ पुरूषों द्वारा सम्मानित होता हैं और उसके बल, आयु, कीर्ति तथा तेज की वृद्धि होती हैं। भूपाल! जो मनुष्य दृढ़तापूर्वक संयम एवं व्रत का पालन करते हुए प्रत्येक पर्व के दिन इस प्रसङ्ग को सुनता है, उसके पितर और पितामह पूर्ण तृप्त होते हैं । राजन्! जिसमें हम लोग निवास करते हैं और जहां हमारे पूर्वजों ने पुण्यकर्मों का अनुष्ठान किया हैं, यह वहीं भारतवर्ष हैं। आपने इसका पूरा-पूरा वर्णन सुन लिया है।
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