महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 19 श्लोक 40-46

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एकोनविंशतितम (19) अध्‍याय: भीष्म पर्व (श्रीमद्भगवद्गीता पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनविंशतितम अध्याय: श्लोक 40-46 का हिन्दी अनुवाद

भरतभूषण! जब उभय-पक्षकी सेनाएं युद्ध के लिये पूर्णत: तैयार हो गयीं, उस समय सूर्यकी प्रभा फीकी पड़ गयी और भारी आवाज के साथ धरती कांपने लगी। भरतश्रेष्‍ठ! उस समय ऐसा जान पड़ता था, मानो पृथ्‍वी विकट नाद करती हुई फटी जा रही है। राजन्! सम्‍पूर्ण दिशाओं में अनेक बार वज्रपात के समान भयानक शब्‍द प्रकट हुई। तीव्र वेग से धूल की वर्षा होने लगी। कुछ भी सूझ नहीं पड़ता था। सहसा वायु के वेग से ध्‍वज हिलने लगे। पताका-सहित वे ध्‍वज सूर्य के समान तेजस्‍वी जान पड़ते थे। उन्‍हें सोने के हार और सुंदर वस्‍त्रों से सजाया गया था। उनमें छोटी-छोटी घंटियों के साथ झालरें बंधी थीं, जिनके मधुर श‍ब्‍द सब ओर फैल रहे थे। इस प्रकार उन महान् ध्‍वजों के शब्‍द से ताड़के जंगलों की भांति उस रणभूमि में सब ओर झन-झनकी आवाज हो रही थी। इस प्रकार युद्ध से आनन्दित होने वाले पुरूष सिंह पाण्‍डव आपके पुत्र की वाहिनी के सामने व्‍यूह बनाकर खड़े थे और हमारे योद्धाओं की रक्‍त और मज्‍जा भी सुखाये देते थे। गदाधारी भीमसेन को आगे खड़ा देख हमारी सारी सेना भयभीत हो रही थी।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्‍मपर्व के अंतर्गत श्रीमद्भगवद्गीतापर्व पाण्‍डवसेना का व्‍यूहनिर्माणविषयक उन्‍नीसवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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