महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 19 श्लोक 19-39
एकोनविंशतितम (19) अध्याय: भीष्म पर्व (श्रीमद्भगवद्गीता पर्व)
पाण्डवसेना में भीमसेन सबके आगे चलनेवाले थे। उनके साथ पराक्रमी धृष्टद्यम्न, नकुल, सहदेव तथा चेदिराज धृष्टकेतु भी थे। तत्पश्र्चात् राजा विराट अपने भाइयों और पुत्रों के साथ इस अक्षौहिणी सेना लेकर भीमसेन के पृष्टभाग की रक्षा कर रहे थे। भीम के पहियों की रक्षा परम तेजस्वी माद्रीकुमारनकुल-सहदेव कर रहे थे। द्रोपदी के पांचों पुत्र तथा अभिमन्यु-ये वेशशाली वीर उनके पृष्टभाग की रक्षा करते थे। पाञ्चालराजकुमार महारथी धृष्टद्युम्र अपनी सेना के चुने हुए शरवीर एवं प्रधान रथी प्रभद्रकों के साथ उन सबकी रक्षा करते थे। भरतश्रेष्ठ! इन सबके पीछे अर्जुन द्वारासुरक्षित शिख्ण्डी भीष्म का विनाश करने के लिये उद्यत हो आगे बढ़ रहा था। अर्जुन के पीछे महाबली सात्यकि थे ।पाञ्चाल वीर युधामन्यु और उत्तमौजा अर्जुन के रथ के पहियों की रक्षा करते थे। चलते-फिरते पर्वतों के समान विशाल और मतवाले गजराजों की सेना के साथ कुंतीपुत्र राजा युधिष्ठिर बीच की सेना में उपस्थित थे। महामना पराक्रमीपाञ्चालराज द्रुपद पाण्डवों के लिये एक अक्षौहिणी सेना के सहित राजा विराट के पीछे-पीछे चल रहे थे। राजन्! उनके रथों पर भांति-भांति के बेल-बूटों से विभूषित स्वर्णमण्डित विशाल ध्वज सूर्य और चन्द्रमा के समान प्रकाशित हो रहे थे । तदनंतर महारथी धृष्टद्युम्र अन्य लोगों को हटाकर स्वयं भाइयों और पुत्रों के साथ उपस्थित हो राजा युधिष्ठिर की रक्षा करने लगे। राजन्! आपके तथा शत्रुओं के रथों पर जो बहुसंख्यक विशाल ध्वज फहरा रहे थे, उन सबको तिरस्कृत करके केवल अर्जुन के रथ पर एकमात्र महान् कपि से उपलक्षित दिव्य ध्वज शोभा पाता था। भीमसेन की रक्षा के लिये उनके आगे-आगे हाथों में खङ्ग, शक्ति तथा ॠषि लिये कई लाख पैदल सैनिक चल रहे थे। राजा युधिष्ठिर के पीछे वर्षाकाल के मेघों की भांति तथा पर्वतों के समान ऊंचे-ऊंचे दस हजार गजराज जा रहे थे। उनके गण्डस्थल से फूटकर मद की धारा वह रही थी। वे सोने की जालदार झूलों से उद्दीप्त हो रहे थे। उनमें शौर्य भरा था। वे मेघों के समान मद की बूंदे बरसाते थे। उनसे कमल के समान सुगंध निकलती थी और वे सभी बहुमूल्य थे। दुर्जय वीर महामनस्वी भीमसेन हाथ में परिघ के समान मोटी एवं भयंकर गदा लिये अपने साथ विशाल सेना को खींच लिये जा रहे थे। उस समय सूर्य की भांति उनकी ओर देखना कठिन हो रहा था। वे आपकी सेना को संतप्त-सी कर रहे थे। निकट आने पर समस्त योद्धा उनकी ओर आंख उठाकर देखने में भी समर्थ न हो सके। यह वज्रनामक व्यूह सर्वथा भयरहित तथा सब ओर मुखवाला था। उसके ध्वज के निकट सुवर्णभूषित धनुष विद्युत् के समान प्रकाशित होता था। गाण्डीवधारी अर्जुन के द्वारा ही वह भयंकर वयूह सुरक्षित था। पाण्डवलोग जिस व्यूह की रचना करके आपकी सेना का सामना करने के लिये खड़े थे, वह उनके द्वारा सुरक्षित होने के कारण मनुष्य लोक में अजेय था। सुर्योदय के समय जब सभी सैनिक संध्योपासना कर रहे थे, बिना बादल के ही पानी की बूंदों के साथ हवा चलने लगी। उसके साथ मेघकी-सी गर्जना भी होती थी। वहां सब ओर नीचे बालू और कंकड़ बरसाती हुई तीव्रवायु बह रही थी। उस समय इतनी धूल उड़ी कि जगत् में धोर अंधकार छा गया। भरतश्रेष्ठ! पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बड़ी भारी उल्का गिरी और उदय होते हुए, सूर्य से टकरा कर बड़े जोर-की आवाज के साथ बिखर गयी।
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