महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 44 श्लोक 1-19
चतुश्चत्वारिंश (44) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
कौरव-पाण्डवों के प्रथम दिन के युद्ध का आरम्भ
धृतराष्ट्रने पूछा-संजय! इस प्रकार जब मेरे पुत्रों और पाण्डवों ने अपनी-अपनी सेनाओं का व्यूह लगा लिया, तब वहां उनमें से पहले किन्होनें प्रहार किया, कौरवों ने या पाण्डवोंने ? संजय ने कहा-राजन्! भाईयोंसहित आपका पुत्र दुर्योधन भीष्म को आगे करके सेनासहित आगे बढा। इसी प्रकार समस्त पाण्डव भी भीमसेन को आगे करके भीष्म से युद्ध करने की इच्छा रखकर प्रसन्न मन से आगे बढे। फिर तो दोनों सेनाओं में सिंहनाद, किलकारियों के शब्द, क्रकच, नरसिंह, भेरी, मृदंग और ढोल आदि बाघों की ध्वनि तथा घोड़ों और हाथियों के गर्जन के शब्द गूंजने लगे। पाण्डव सैनिक हमलोगों पर टूट पडे़ ओर हमलोगों ने भी विकट गर्जना करते हुए उनपर धावा बोल दिया। इस प्रकार अत्यन्त धोर युद्ध होन लगा।भीषण मारकाट से युक्त उस महान् संग्राम में आपके पुत्रों तथा पाण्डवों की विशाल सेनाएं प्रचण्ड वायु से विकम्पित हुए वनों की भॉति शंग और मृदंग के शब्दो से कॉपने लगी। राजाओं, हाथियों, घोड़ों तथा रथों से भरी हुई उभय पक्षकी सेनाएं उस अमंगलमय मुहूर्त में जब एक दूसरे के सम्मुख और समीप आयी, उस समय वायु से उद्वेलित समुद्रों की भॉति उनका भयंकर कोलाइल सब और गूंजने लगा। उस रोमांचकारी भयंकर शब्द के प्रकट होते ही महाबाहु भीमसेन सॉड की भॉति गर्जने लगे। भीमसेना की वह गर्जना शंख और दुन्दुभियों के गम्भीर धोष, गजराजों के चिग्घाड़ने की आवाज तथा सैनिकों के सिंह-नादको भी दबाकर सब और सुनायी देने लगी। उस सेनाओं में हजारों घोडे़ जोर-जोर से हिनहिना रहे थे; परन्तु गर्जना करते हुए भीमसेना का शब्द उन सब शब्दों को दबाकर ऊपरउठ गया था। वे मेघ के समान गम्भीर स्वर में गर्जन-तर्जन कर रहे थे। उनका शब्द इन्द्र वज्र की गड़गडाहट के समान भयानक था।उस सिंहनाद को सुनकर आप के समस्त सैनिक संत्रस्त हो उठे थे। जैसे सिंह की आवाज सुनकर दूसरे वन्य पशु भयभीत हो जाते, उसी प्रकार वीर भीमसेन की गर्जना से भयभीत हो कौरवसेना के समस्त वाहन मलमूत्र करने लगे। महान् मेघ के समान अपने भयंकर रूपको प्रकट करते, गर्जते तथा आपके पुत्रों को डराते हुए भीमसेन कौरव-सेना पर चढ़ आये। महान् धनुर्धर भीमसेन को आते देख दुर्योधन के भाईयों (तथा अन्य वीरो) ने जैसे बादल सूर्य को ढक लेते हैं, उसी प्रकार बाणसमूहों से उन्हें आच्छादित करते हुए सब ओर से घेर लिया। नरेश्वर ! आपके पुत्र दुर्योधन, दुर्मुख, दुःशल, शल, अतिरथी, दुःशासन, दुर्भर्षण, विविशति, चित्रसेन, महारथी विकर्ण, पुरूमित्र, जय, भोज तथा पराक्रमी भूरिश्रवा-ये सभी वीर अपने बडे़-बडे़ धनुषों को कॅपाते हुए छूटने पर विषधर सर्प के समान प्रतीत होनेवाले बाणों को हाथ में लेते हुए बिजलियों सहित मेघों के समान जान पडते थे। ये सभी भूपाल पाण्डव-सेना के सम्मुख (भीमसेना को घेरकर) खडे़ हो गये। तदनन्तर द्रोपदी के पांचों पुत्र, महारथी अभिमन्यु, नकुल, सहदेव तथा द्रुपदपुत्र धृष्टधृम्न-ये सभी योद्धा वज्र के समान महान् वेगाशाली तीक्ष्ण बाणों द्वारा पर्वतशिखरोंकी भॉति धृतराष्ट्रपुत्रों को पीड़ा देते हुए उनपर चढ़ आये।
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