महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 47 श्लोक 1-21
सप्तचत्वारिंश (47) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
भीष्म के साथ अभिमन्यु का भयंकर युद्ध, शल्य के द्वारा उत्तरकुमार का वधऔर श्वेत का पराक्रम संजय कहते है- राजन्! उस अत्यन्त भयंकर
दिनका पूर्वभाग जब प्रायः व्यतीत हो गया, तब बडे़-बडे़ वीरों का विनाश करने वाले उस भयानक संग्राम में आपके पुत्र की आज्ञा से दुर्मुख, कृतवर्मा, शल्य और विविंशति वहां आकर भीष्म की रक्षा करने लगे। इन पांच अतिरथी वीरों के सुरक्षित हो भरतभूषण महारथी भीष्मजी ने पाण्डवों की सेनाओं में प्रवेश किया। भारत ! चेदि, काशि, करूष तथा पांचाललोक में विचरते हुए भीष्मका तालचिंहित चंचल पताकाओंवाला रथ अनेक-सा दिखायी देने लगा। वे युद्ध झुकी हुई गांठवाले अत्यन्त वेगशाली भल्लो द्वारा शत्रुओं के मस्तक, रथ, जुआतथा ध्वज काट-काटकर गिराने लगे। भरतश्रेष्ठ! वे रथके भागोंपर नृत्य-सा कर रहे थे। उनके बाणों से मर्मस्थानों में खाये हुए हाथी अत्यन्त आर्तनाद करने लगे। यह देख अभिमन्यू अत्यन्त कुपित हो पिंगलवर्ण के श्रेष्ठ घोड़ोसे जुते हुए रथपर बैठकर भीष्म के रथ की और दोडे़ आये। उनका वह रथ कर्णिकार के चिन्ह्र युक्त स्वर्णनिर्मित विचित्र ध्वज से सुशाभित था। उन्होनें भीष्मपर तथा उनकी रक्षा लिये आये हुए उन श्रेष्ठ रथियोंपर भी आक्रमण किया।वीर अभिमन्यु तीखे बाण से उस तालचिन्हित ध्वजको छेद डाला और भीष्म तथा उनके अनुगामी रथियों के साथ युद्ध आरम्भ कर दिया। उन्होनें एक बाण से कृतवर्मा को और पांच शीघ्रगामी बाणों से शल्य बेधकरतीखी धारवाले नौ बाणों से प्रपितामह भीष्म को भी चोट पहुंचायी। तत्पश्चात् धनुष को अच्छी तरह खींचकर पूरे मनोयोग से चलाते हुए एक बाणके द्वारा उनके सुर्वणभूषित ध्वज को भी छेद डाला। इसके बाद झुकी हुई गांठवाले तथा सब प्रकार के आवरणों का भेदन करनेवाले एक भल्ल के द्वारा दुर्मुख के सारथी का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। साथ ही कृपाचार्य के स्वर्णभूषित धनुषको भी तेज धारवाले भाले से काट गिराया; फिर सब और धूमकर नृत्य-सा करते हुए महारथी अभिमन्यु ने अत्यन्त कुपित हो तीखी नोकवाले बाणों से भीष्म की रक्षा करनेवाले उन महारथियों को भी घायल कर दिया। अभिमन्यु के हाथों की यह फूर्ती देखकर देवताओं को भी बड़ीप्रसन्नता हुई। अर्जुनकुमार के इस लक्ष्य-वैध की सफलता से प्रभावित हो भीष्म आदि सभी रथियों ने उन्हे साक्षात् अर्जुन के समान शक्तिशाली समझा। अभिमन्यु का धनुष गाण्डीव के समान टंकारध्वनि प्रकट करनेवाला, हाथों की फूर्ती दिखाने का उपयुक्त स्थान और खीचें जानेपर अलातचक्र के समान मण्डलाकार प्रकाशित होने वाला था। वह वहां सम्पूर्ण दिशाओं में धूम रहा था। अर्जुनकुमार अभिमन्यु को पाकर शत्रुवीरों का हनन करनेवाले भीष्म ने समरभूमि में नौ शीघ्रगामी महावेगवान् बाणोंद्वारा तुरन्त ही उन्हें वेधदिया। साथ ही उस महातेजस्वी वीर के ध्वज को भी तीन बाणों से काट गिराया; इतना ही नहीं, नियमपूर्वक ब्रहमचर्यव्रत का पालने करनेवाले भीष्मने तीन बाणों से अभिमन्यु के सारथीको भी मार डाला। आर्य! इसी प्रकार कृतवर्मा, कृपाचार्य तथा शल्यउस मैनाक पर्वत की भॉति स्थिर हुए अर्जुन कुमार को बाणाविद्ध करके भी कम्पित न कर सके। दुर्योधन के उन महारथियों से घिर जाने पर भी शूरवीर अर्जुनकुमार उन पांचों रथियों पर बाणवर्षा करता रहा। इस प्रकार अपने बाणों की वर्षा से उन सबके महान् अस्त्रों का निवारण करके बलवान् अर्जुनकुमार अभिमन्यु ने भीष्मपर सायकों का प्रहार करते हुए बडे़ जोर का सिंहनाद किया।
« पीछे | आगे » |