महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 6 श्लोक 23-42
षष्ठ (6) अध्याय: भीष्म पर्व (जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व)
भगवान् कुबेर उन्हीं से धन का चतुर्य भाग प्राप्त करके उसका उपभोग करते हैं और उस धन का सोलहवां भाग मनुष्यों को देते हैं। सुमेरू पर्वत के उत्तर भाग में समस्त ॠतुओं के फूलों से भरा हुआ दिव्य एवं रमणीय कर्णिकार (कनेर वृक्षों का) वन हैं, जहां शिलाओं के समूह संचित हैं। वहां दिव्य भूतों से घिरे हुए साक्षात् भूतभावन भगवान् पशुपति पैरों तक लटकने वाली करने के फूलों की दिव्य माला धारण किये भगवती उमा के साथ विहार करते हैं। वे अपने तीनो नेत्रों द्वारा ऐसा प्रकाश फैलाते हैं, मानो तीन सूर्य उदित हुए हों। उग्र तपस्वी एवं उत्तम व्रतों का पालन करने वाले सत्यवादी सिद्ध पुरूष ही वहां उनका दर्शन करते हैं। दुराचारी लोगों को भगवान् महेश्वर का दर्शन नहीं हो सकता। नरेश्वर! उस मेरूपर्वत के शिखर से दुग्ध के समान श्वेतधार वाली, विश्र्वरूपा, अपरिमित शक्तिशालिनी, भयंकर वज्रपात के समान शब्द करने वाली, परम पुण्यात्मा पुरूषों द्वारा सेवित, शुभस्वरूपा पुण्यमयी भागीरथी गङ्गा बडे़ प्रबलवेग से सुन्दर चन्द्रकुण्ड में गिरती हैं। वह पवित्र कुण्ड स्वयं गङ्गाजी ने ही प्रकट किया हैं, जो अपनी अगाध जलराशि के कारण समुद्र के समान शोभा पाता हैं। जिन्हें अपने ऊपर धारण करना पर्वतों के लिये भी कठिन था, उन्हीं गङ्गा को पिनाकधारी भगवान् शिव एक लाख वर्षों तक अपने मस्तक पर ही धारण किये रहे।
राजन्! मेरू के पश्चिम भाग में केतुमाल द्वीप हैं, वहीं अत्यन्त विशाल जम्बूखण्ड नामक प्रदेश है, जो नन्दनवन के समान मनोहर जान पड़ता हैं। भारत! वहां के निवासियों की आयु दस हजार वर्षों की होती हैं। वहां के पुरूष सुवर्ण के समान कान्तिमान् और स्त्रियां अप्सराओं के समान सुन्दरी होती हैं। उन्हें कभी रोग और शोक नहीं होते। उनका चित्त सदा प्रसन्न रहता हैं। वहां तपाये हुए सुवर्ण के समान गौर कान्तिवाले मनुष्य उत्पन्न होते हैं। गन्धमादन पर्वत के शिखरों पर गुह्यकों के स्वामी कुबेर राक्षसों के साथ रहते और अप्सराओं के समुदायों के साथ आमोद-प्रमोद करते हैं। गन्धमादन के अन्यान्य पार्श्वर्ती पर्वतों पर दूसरी-दूसरी नदियां हैं, जहां निवास करने वाले लोगों की आयु ग्यारह हजार वर्षों की होती हैं। राजन्! वहां के पुरूष हृष्ट-पुष्ट, तेजस्वी और महाबली होते हैं तथा सभी स्त्रियां कमल के समान कान्तिमती और देखने में अत्यन्त मनोरम होती हैं। नील पर्वत के उत्तर श्वेतवर्ष और श्वेतवर्ष से उत्तर हिरण्यकवर्ष हैं। तत्पश्चात् श्रृङ्गवान् पर्वत से आगे ऐरावत नामक वर्ष है। राजन्! वह अनेकानेक जनपदों से भरा हुआ हैं।
महाराज! दक्षिण और उत्तर के क्रमश: भारत और ऐरावत नामक दो वर्ष धनुष की दो कोटियों के समान स्थित हैं और बीच में पांच वर्ष (श्वेत, हिरण्यक, इलावृत, हरिवर्ष तथा हैमवत) हैं। इन सबके बीच में इलावृतपवर्ष हैं। भारत से आरम्भ करके ये सभी वर्ष आयु के प्रमाण, आरोग्य, धर्म, अर्थ और काम- इन सभी दृष्टियों से गुणों में उत्तरोत्तर बढ़ते गये हैं। भारत! इन सब वर्षों में निवास करने वाली प्राणी परस्पर मिल-जुलकर रहते हैं। महाराज! इस प्रकार यह सारी पृथ्वी पर्वतों द्वारा स्थिर की गयी हैं। राजन्! विशाल पर्वत हेमकुट ही कैलास नाम से प्रसिद्ध हैं। जहां कुबेर गुह्यकों के साथ सानन्द निवास करते हैं। कैलास से उत्तर मैनाक है और उससे भी उत्तर दिव्य तथा महान् मणिमय पर्वत हिरण्यश्रृङ्ग हैं।
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