महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 6 श्लोक 43-56
षष्ठ (6) अध्याय: भीष्म पर्व (जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व)
उसी के पास विशाल, दिव्य, उज्जवल तथा काञ्चनमयी बालुका से सुशोभित रमणीय बिन्दुसरोवर हैं, जहां राजा भागीरथ ने भागीरथी गङ्गा का दर्शन करने के लिये बहुत वर्षों तक निवास किया था। वहां बहुत-से मणिमय यूप तथा सुवर्णमय चैत्य (महल) शोभा पाते हैं। वहीं यज्ञ करके महायशस्वी इन्द्र ने सिद्धि प्राप्त की थी। उसी स्थान पर सब और सम्पूर्ण जगत् के लोग लोकस्त्रष्टा प्रचण्ड तेजस्वी सनातन भगवान् भूतनाथ की उपासना करते है। नर, नारायण, ब्रह्मा, मनु और पांचवे भगवान् शिव वहां सदा स्थित रहते हैं। ब्रह्मलोक से उतरकर त्रिपथगामिनी दिव्य नदी गङ्गा पहले उस बिन्दुसरोवर में ही प्रतिष्ठित हुई थीं। वहीं से उनकी सात धाराएं विभक्त हुई हैं। उन धाराओं के नाम इस प्रकार हैं- वस्वोकसारा, नलिनी, पावनी सरस्वती, जम्बूनदी, सीता, गङ्गा और सिंधु। यह (सात धाराओं का प्रादुर्भाव जगत् के उपकार के लिये) भगवान् का ही अचिन्त्य एवं दिव्य सुन्दर विधान हैं। जहां लोग कल्प के अन्ततक यज्ञानुष्ठान के द्वारा परमात्मा की उपासना करते हैं। इन सात धाराओं में जो सरस्वती नामवाली धारा हैं, वह कहीं प्रत्यक्ष दिखायी देती हैं और कहीं अदृश्य हो जाती है। ये सात दिव्य गङ्गाएं तीनों लोकों में विख्यात हैं। हिमालय पर राक्षस, हेमकूट पर गुह्यक तथा निषधपर्वत पर सर्प और नाग निवास करते हैं। गोकर्ण तो तपोधन है। श्वेतपर्वत सम्पूर्ण देवताओं और असुरों का निवासस्थान बताया गया हैं। निषधगिरि पर गन्धर्व तथा नीलगिरि पर ब्रह्मर्षि निवास करते हैं। महाराज! श्रृङ्गवान् पर्वत तो केवल देवताओं की ही विहारस्थली है।
राजेन्द्र! इस प्रकार स्थावर और जङ्गम सम्पूर्ण प्राणी इन सात वर्षों में विभागपूर्वक स्थित हैं। उनकी अनेक प्रकार की दैवी और मानुषी समृद्धि देखी जाती हैं। उसकी गणना असम्भव है। कल्याण की इच्छा रखने वाले मनुष्य को उस समृद्धि पर विश्वास करना चाहिये। इस प्रकार वह सुदर्शनद्वीप बताया गया हैं, जो दो भागों में विभक्त होकर चन्द्रमण्डल में प्रतिबिम्बित हो खरगोशकी-सी आकृति में दृष्टिगोचर होता हैं। राजन्! आपने जो मुझसे इस शशकृति (खरगोशकी-सी आकृति) के विषय में प्रश्न किया है उसका वर्णन करता हूं, सुनिये। पहले जो दक्षिण और उत्तर में स्थित (भारत और ऐरावत नामक) दो द्वीप बताये गये हैं, वे ही दोनों उस शश (खरगोश) के दो पार्श्वभाग हैं। नागद्वीपतथा काश्यपद्वीप उसके दोनों कान हैं। राजन्! ताम्रवर्ण के वृक्षों और पत्रों से सुशोभित श्रीमान् मलयपर्वत ही इसका सिर हैं। इस प्रकार यह सुदर्शनद्वीप का दूसरा भाग खरगोश के आकाश में दृष्टिगोचर होता हैं।
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