महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 73 श्लोक 18-34
त्रिसप्ततितम (73) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
इससे भीमसेन अत्यन्त क्रोध से जल उठे । उन्होने एक विचित्र धनुष हाथ में लिया, जो अत्यन्त सुदृढ़ और शत्रुओं के प्राण लेने में समर्थ था। उसके ऊपर उन्होंने दसती खेबाण रक्खे; फिर धनुष को कान तक खींचकर वे बाण छोड़ दिये । उन सीधे जाने वाले वेगवान् एवं तीक्ष्ण बाणों द्वारा भीम ने बिना किसी व्यग्रता केतु रंत ही कुरूराज दुर्योधन की छाती में गहरी चोट पहुँचायी। दुर्योधन की छाती पर एकमणि शोभा पाती थी, जो सुवर्ण मय सूत्र में पिरोयी हुई थी। वह भीमसेन के बाणों से आच्छादित होकर वैसे ही शोभा पाने लगी, जैसे आकाश में ग्रहों से घिरे हुए सूर्य सुशोभित होते हैं। भीमसेन के बाणों से पीड़ित होकर आपका तेजस्वी पुत्र उनके द्वारा किये गये आघात को उसी प्रकार नहीं सह सका, जैसे मतवाला हाथी ताल की आवाज नहीं सहन करता है।
महाराज । तदनन्तर पत्थर परागड़ करते किये हुए स्वर्ण पंख युक्त बाणों द्वारा क्रोध में भरे हुए दुर्योधन ने भीमसेन को बींध डाला और पाण्डव सेना को भयभीत करने लगा। उस समरागंण में परस्पर युद्ध करके अत्यन्त क्षत-विक्षत हुए आपके दोनों महाबली पुत्र दुर्योधन और भीमसेन देवताओं के समान शोभा पाने लगे। शत्रुवीरों का नाश करने वाले सुभद्राकुमार अभिमन्यु ने नरश्रेष्ठ चित्र सेन को दस और पुरुमित्र को सात बाणों से बींध डाला। युद्ध में इन्द्र के समान पराक्रमी वीर अभिमन्यु ने सत्य व्रत को सत्तर बाणों से घायल करके रणागंण में नृत्य सा करते हुए हम सब लोगों को अत्यन्त पीड़ित कर दिया। तब चित्र सेन ने दस, सत्य व्रत नेनौ और पुरु मित्र ने सात बाणों से मारकर अभिमन्यु को घायल कर दिया। उन दोनों के द्वारा घायल होकर अपने शरीर से रक्त बहाते हुए अभिमन्यु ने चित्रसेन के शत्रु निवार कम हान् एवं विचित्र धनुष को काट डाला। साथ ही चित्रसेन के कवच को विदीर्ण करके उसकी छाती में भी एक बाण मारा। दनन्तर आपके वीर एवं महारथी राजकुमार युद्ध में एकत्र हो क्रोध में भरकर अभिमन्यु कोतीखे बाणों से बेधने लगे; परंतु उत्तम अस्त्रों के ज्ञाता अभिमन्यु ने अपने पैने बाणों द्वारा उन सबको घायल कर दिया।
जैसे वन में लगी हुई प्रचण्ड आगतृण समूह को अनाया सही जलाकर भस्मकर डालती है, उसी प्रकार अभिमन्यु उस समरागंण में कौरव सेना को दग्धकर रहा था । उसके इस महान्कर्म को देखकर आपके पुत्रों ने उसे सब ओर से घेर लिया। महाराज। आपकी सेना का संहार करता हुआ सुभद्रा कुमार अभिमन्यु ग्रीष्म-ऋतु में प्रज्वलित हुई प्रचण्ड अग्नि से भी बढ़कर शोभा पार हाथा। प्रजानाथ । उस का यह पराक्रम देखकर आपका पौत्र लक्ष्मण तुरंत ही युद्ध में सुभद्रा कुमार का सामना करने के लिये आ पहुँचा। तब क्रोध में भरे हुए अभिमन्यु ने उत्तम लक्षणों से युक्त लक्ष्मण को छः और उसके सारथि को तीन तीखे बाणों से बींध डाला। राजन् । इसी प्रकार लक्ष्मण ने भी सुभद्रा कुमार को अपने तीखे बाणों से घायल कर दिया। महाराज । वह अद्भुत सी बात हुई।
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