महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 7 श्लोक 19-32

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सप्तम (7) अध्याय: भीष्म पर्व (जम्बूखण्‍डविनिर्माण पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: सप्तम अध्याय: श्लोक 19-32 का हिन्दी अनुवाद

नील‍गिरि के दक्षिण और निषध के उत्तर सुदर्शन नामक एक विशाल जामुन का वृक्ष है, जो सदा स्थिर रहने वाला हैं। वह समस्त मनोवाञ्छित फलों को देने वाला, पवित्र तथा सिद्धों और चरणों का आश्रय हैं। उसी के नाम पर यह सनातन प्रदेश जम्बूद्वीप के नाम से विख्‍यात है। भरतश्रेष्‍ठ! मनुजेश्‍वर! उस वृक्षराज की ऊंचाई ग्यारह सो योजन हैं। वह (ऊंचाई) स्वर्गलोक को स्पर्श करती हुई-सी प्रतीत होती हैं। उसके फलों में जब रस आ जाता हैं अर्थात् जब वे प‍क जाते हैं, तब अपने-आप टूटकर गिर जाते हैं। उन फलों की लंबाई ढाई हजार अरत्नि मानी गयी है। राजन्! वे फल इस पृथ्‍वी पर गिरते समय भारी धमाके-की आवाज करते हैं और उस भूतलपर सुवर्णसदृश रस बहाया करते हैं। जनेश्‍वर! उस जम्बू के फलों का रस नदी के रूप में परिणत होकर मेरूगिरि की प्रदक्षिणा करता हुआ उत्तरकुरूवर्ष मे पहुंच जाता हैं। राजन्! फलों के उस रस का पान कर लेने पर वहां के निवासियों के मन में पूर्ण शान्ति और प्रसन्नता रहती हैं। उन्हें पिपासा अथवा वृद्धावस्था कभी नहीं सताती है । उस जम्बू नदी से जाम्बूनद नामक सुवर्ण प्रकट होता है, जो देवताओं का आभूषण है। वह इन्द्रगोप के समान लाल और अत्यन्त चमकीला होता है। वहां के लोग प्रात:कालीन सूर्य के समान कान्तिमान् होते हैं। माल्यवान् पर्वत के शिखर पर सदा अग्निदेव प्रज्वलित दिखायी देते हैं।
भरतश्रेष्‍ठ! वे वहां संवर्तक एवं कालाग्नि के नाम से प्रसिद्ध हैं। माल्यवान् के शिखर पर पूर्व-पूर्व की ओर नदी प्रवाहित होती हैं। माल्यवान् का विस्तार पांच-छ: हजार योजन है। वहां सुवर्ण के समान कान्तिमान् मानव उत्पन्न होते हैं। वे सब लोग ब्रह्मलोक से नीचे आये हुए पुण्‍यात्मा मनुष्‍य हैं। उन सबका सबके प्रति साधुतापूर्ण बर्ताव होता हैं। वे ऊर्ध्‍वरेता (नैष्ठिक ब्रह्मचारी) होते और कठोर तपस्या करते हैं। फिर समस्त प्राणियों की रक्षा के लिये सूर्यलोक में प्रवेश कर जाते हैं। उनमें से छाछठ हजार मनुष्‍य भगवान् सूर्य को चारो ओर-से घेरकर अरूण के आगे-आगे चलते हैं। वे छाछठ हजार वर्षों तक ही सूर्यदेव के ताप में तपकर अन्त में चन्द्रमण्‍डल में प्रवेश कर जाते हैं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्‍मपर्व के अन्र्तर्गत जम्बूखण्‍डविनिर्माणपर्व में माल्यवान् का वर्णन विषयक सातवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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