महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 88 श्लोक 1-20
अष्टाशीतितम (88) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मववध पर्व)
भीष्म का पराक्रम, भीमसेन के द्वारा धृतराष्ट्रभ के आठ पुत्रों का वध तथा दुर्योधन और भीष्म की युद्धविषयक बातचीत
संजय कहोते हैं- राजन्! जैसे तपते हुए सूर्य की ओर देखना कठिन होता है, उसी प्रकार जब भीष्म उस उमर में कुपित हो सब ओर अपना प्रताप प्रकट करने लगे, उस समय पाण्डरव सैनिक उनकी ओर देख न सके। तदनन्तर धर्मपुत्र युधिष्ठिर की आज्ञा से समस्त सेनाएं गङ्गानन्दन भीष्मी पर टूट पड़ीं, जो अपने तीखे बाणों से पाण्डठव सेना का मर्दन कर रहे थे।
युद्ध की स्पृहा रखने वाले भीष्म अपने बाणों के द्वारा सोमक, सृंजय और पाञ्चाल महाधनुर्धरों को रणभूमि में गिराने लगे। भीष्मन के द्वारा घायल किये जाते हुए वे सोमक (सृंजय) और पाञ्चाल भी मृत्यु का भय छोड़कर तुरंत भीष्मष पर ही टूट पडे़। राजन्! वीर शान्तनुनन्दन भीष्मा उस युद्ध के मैदान में सहसा उन रथियों की भुजाओं और मस्तकों को काट-काटकर गिराने लगे। आपके ताऊ देवव्रत ने बहुत-से रथियों को रथहीन कर दिया। घोड़ों से घुड़सवारों के मस्तक कट-कटकर गिरने लगे। महाराज! हमने देखा, भीष्मं के अस्त्र से मूर्च्छित हो बहुत-से पर्वताकार गजराज रणभूमि में पडे़ है और उनके पास कोई मनुष्यि नहीं हैं। प्रजानाथ! उस समय वहां रथियों में श्रेष्ठप महाबली भीमसेन के सिवा पाण्ड वपक्ष का कोई भी वीर भीष्मस के सामने नहीं ठहोर सका। वे ही युद्ध में भीष्मप का सामना करते हुए उन पर अपने बाणों का प्रहार कर रहे थे। भीष्मस और भीमसेन में युद्ध होते समय सम्पूर्ण सेनाओं में भयंकर कोलाहल मच गया और पाण्डेव हर्ष में भरकर जोर-जोर से सिंहनाद करने लगे। जिस समय युद्ध में वह जनसंहार हो रहा था, उसी समय राजा दुर्योधन अपने भाइयों से घिरा हुआ वहां आ पहुंचा और भीष्मह की रक्षा करने लगा। इसी समय रथियों में श्रेष्ठ भीमसेन ने भीष्मद के सारथि को मार डाला। फिर तो उनके घोडे़ उस रथ को लेकर रणभूमि में चारों ओर दौड़ लगाने लगे। राजेन्द्र! भयंकर पराक्रमी भीमसेन युद्ध में सब ओर विचरने लगे। उस समय आपके पुत्र सुनाभ ने भीमसेन पर धावा किया और उन्हें सात तीखे बाणों से बींध डाला।
भारत! तब भीमसेन ने भी अत्यन्त कुपित होकर झुकी हुई गांठ वाले क्षुरप्रनामक बाण से शीघ्र ही सुनाभ का सिर काट दिया। उस तीखे क्षुरप्रसे मारा जाकर वह पृथ्वीर पर गिर पड़ा। महाराज! आपके उस महारथी पुत्र के मारे जाने पर उसके सात रणवीर भाई, जो वहीं मौजूद थे, भीमसेन का यह अपराध सहन न कर सके। आदित्यकेतु, बह्लाशी, कुण्ड धार, महोदर, अपराजित, पण्डितक और अत्यन्त दुर्जय वीर विशालाक्ष- ये सातों शत्रुमर्दन भाई विचित्र वेशभूषा से सुसज्जित हो विचित्रकवच और ध्व ज धारण किये संग्रामभूमि में युद्ध की इच्छा से पाण्डु पुत्र भीमसेन पर टूट पडे़। जैसे वृत्रविनाशक इन्द्र ने नमुचि नामक दैत्यपर प्रहार किया था, उसी प्रकार महोदर ने समरभूमि में अपने वज्रसरीखे नौ बाणों से भीमसेन को घायल कर दिया। महाराज! आदित्यकेतु ने सत्तर, बह्लाशी पांच, कुण्डसधार ने नब्बे, विशालाक्ष ने पांच और अपराजित ने महारथी महाबली भीमसेन को पराजित करने के लिये उन्हें बहुत-से बाणों द्वारा पीडित किया। पण्डितक ने उस युद्ध में तीन बाणों से भीमसेन को घायल कर दिया। तब भीम उस रणक्षेत्र में शत्रुओं द्वारा किये हुए प्रहारर को सहन न कर सके।
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