महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 88 श्लोक 21-44

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अष्टाशीतितम (88) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टाशीतितम अध्याय: श्लोक 21-44 का हिन्दी अनुवाद

उन शत्रुसूदन वीर ने बायें हाथ से धनुष को अच्छी तरह दबाकर झुकी हुई गांठ वाले बाण से समरभूमि में आपके पुत्र अपराजित का सुन्दर नासिका से युक्त मस्तक काट डाला। भीमसेन से पराजित हुए अपराजित मस्तक धरती पर जा गिरा। तत्पश्चातत् भीमसेन ने एक दूसरे भल्ल के द्वारा सब लोगों के देखते-देखते महारथी कुण्डकधार को यमराज के लोक में भेज दिया। भरतनन्दन! तब अमेय आत्मबल से सम्पन्न भीम ने समर में पुन: एक बाण का संधान करके उसे पण्डित की ओर चलाया। जैसे कालप्रेरित सर्प किसी मनुष्ये को शीघ्र ही डंसकर लापता हो जाता है, उसी प्रकार वह बाण पण्डित की हत्या करके धरती में समा गया। उसके बाद उदार हृदय वाले भीम ने अपने पूर्व क्लेशों का स्मरण करके तीन बाणो द्वारा विशालाक्ष के मस्तक को काटकर धरती पर गिरा दिया। राजन्! तत्पश्चा त् उन्होंने महाधनूर्धर महोदर की छाती में एक नाराच से प्रहा।र किया। उससे मारा जाकर वह युद्ध में धरती पर गिर पड़ा। भारत! तदनन्तर भीम ने रणक्षेत्र में एक बाण से आदित्यकेतु की ध्व जा काटकर अत्यन्त तीखे भल्ल के द्वारा उसका मस्तक भी काट दिया। इसके बाद क्रोध में भरे हुए भीमसेन ने झुकी हुई गांठवाले बाण से मारकर बह्लाशी को यमलोक भेज दिया। प्रजानाथ! तब आपके दूसरे पुत्र भीमसेन के द्वारा सभा में की हुई उस प्रतिज्ञा को सत्य मानकर वहां से भाग खडे़ हुए। भाइयों के मरने से राजा दुर्योधन को बड़ा कष्ट हुआ। अत: उसने आपके समस्त सैनिकों को आज्ञा दी कि इस भीमसेन को युद्ध में मार डालो। प्रजानाथ! इस प्रकार ये आपके महाधनुर्धर पुत्र अपने भाइयों को मारा गया देख उन बातों की याद करने लगे, जिन्हें महाज्ञानी विदुर ने कहा था। वे सोचने लगे-दिव्यदर्शी विदुर ने हमारे कुशल एवं हित के लिये जो बात कही थी, वह आज सिर पर आ गयी। जनेश्र्वर! आपने अपने पुत्रों के प्रति प्रेम के कारण लोभ और मोह के वशीभूत हो, विदुर ने पहले जो सत्य एवं हित की महत्त्वपूर्ण बात बतायी थी, उस पर ध्यावन नहीं दिया। उनके कथानुसार ही बलवान् पाण्डुवपुत्र महाबाहु भीम आपके पुत्रों के वध का कारण बनते जा रहे हैं और उसी प्रकार वे कौरवों का सर्वनाश कर रहे हैं। उस समय राजा दुर्योधन युद्वभूमि में भीष्म के पास जाकर महान दु:ख से व्याप्त एवं अत्यन्त शोकमग्न होकर विलाप करने लगे। पितामह! भीमसेन ने युद्व में मेरे शूरवीर बन्धुओं को मार डाला और दूसरे भी समस्त सैनिक विजय के लिये पूर्ण प्रयत्न करते हुए भी असफल हो उनके हाथ से मारे जा रहे है। आप मध्यस्थ बने रहने के कारण सदा हमलोगों की उपेक्षा करते हैं। मैं बड़े बुरे मार्गपर चढ़ आया। मेरे इस दुर्भाग्य को देखिये। यह क्रूरतापूर्ण वचन सुनकर आपके ताऊ भीष्म अपने नेत्रों से आँसू बहाते हुए वहाँ दुर्योधन से इस प्रकार बोले। तात ! मैंने, द्रोणाचार्यने, विदुरने तथा यशस्विनी गान्धारी देवी ने भी पहले ही यह सब बात कह दी थी, परंतु तुमने इस पर ध्यान नहीं दिया। शत्रुसूदन ! मैंने पहले ही यह निश्चय प्रकट कर दिया था कि तुम्हे मुझे या द्रोणाचार्य को युद्व में किसी प्रकार भी नहीं लगाना चाहिये (क्योंकि हम लोगों का कौरवों तथा पाण्डवों के प्रति समान स्नेह है)। मैं तुमसे यह सत्य कहता हूं कि भीमसेन धृतराष्ट्र के पुत्रों में से जिस-जिस को युद्व में (अपने सामने आया हुआ) देख लेंगे, उसे प्रतिदिन के संग्राम में अवश्य मार डालेंगे। अतः राजन् ! तुम स्थिर होकर युद्व के विषय में अपना दृढ़ निश्चय बना लो और स्वर्ग को ही अन्तिम आश्रय मान-कर रणभूमि में पाण्डवों के साथ युद्व करो। भारत ! इन्द्रसहित सम्पूर्ण देवता और असुर मिलकर भी पाण्डवों को जीत सकते। अतः युद्ध के लिये पहले अपनी बुद्धि को स्थिर कर लो। उसके बाद युद्ध करो।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में सुनाम आदि धृतराष्ट्र के पुत्रों का वधविषयक अट्ठसीवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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