महाभारत मौसल पर्व अध्याय 7 श्लोक 41-60
सप्तम (7) अध्याय: मौसल पर्व
उस जन समुदाय के निकलते ही मगरों और घडियालों के निवास स्थान समुद्र ने रत्नों से भरी-पूरी द्वारका नगरी को जल से डूबो दिया । पुरूष सिंह अर्जुन ने उस नगर का जो-जो भाग छोड़ा, उसे समुद्र ने अपने जल से अप्लावित कर दिया ।यह अद्भुत दृश्य देखकर द्वारकावासी मनुष्य बड़ी तेजी से चलने लगे। उस समय उनके मुख से बारंबार यही निकलता था कि दैवकी लीला विचित्र है ।अर्जुन रमणीय काननों, पर्वतों और नदियों के तट पर निवास करते हुए वृष्णिवंश की स्त्रियों को ले जा रहे थे। चलते-चलते बुद्विमान एवं सामर्थ्यशाली अर्जुन ने अत्यन्त समृद्धिशाली पंचनद देश में पहुंचकर जो गौ, पशु तथा धन-धान्य से सम्पन्न था, ऐसे प्रदेश में पड़ाव डाला । भरतनन्दन! एक मात्र अर्जुन के संरक्षण में ले जायी जाती हुई इतनी अनाथ स्त्रियों को देखकर वहां रहने-वाले लुटेरों के मन में लोभ पैदा हुआ ।लोभ से उनके चित्तकी विवेकशक्ति नष्ट हो गयी। उन अशुभदर्शी पापाचारी आभीरों ने परस्पर मिलकर सलाह की ।भाइयों ! देखो, यह अकेला धनुर्धर अर्जुन और ये हतोत्साह सैनिक हम लोगों को लांघकर वृद्धों और बालकों के इस अनाथ समुदाय को लिये जा रहे है। (अत: इन पर आक्रमण करना चाहिये) ।ऐसा निश्चय करके लूट का माल उडाने वाले वे लट्ठधारी लुटेरे वृष्णिवंशियों के उस समुदाय पर हजारों की संख्या में टूट पड़े । समय के उलट फेर से प्रेरणा पाकर वे लुटेरे उन सबके वधके लिये उतारू हो अपने महान सिंहनाद से साधारणलोगों को डराते हुए उनकी ओर दौडे़ ।
आक्रमणकारियों को पीछे की ओर से धावा करते देख कुन्ती कुमार महाबाहु अर्जुन सेवको सहित सहसा लौट पड़े और उनसे हंसते हुए-से बोले- ।धर्म को न जानने वाले पापियो ! यदि जीवित रहना चाहते हो तो लौट जाओ; नही तो मेरे द्वारा मारेज जाकर या मेरे बाणों से विदीर्ण होकर इस समय तुम बड़े शोक में पड़ जाओगे ।वीरवर अर्जुन के ऐसा कहने पर उनकी बातों की अवहेलना करके वे मूर्ख अहीर उनके बारंबार मना करने पर भी उस जन समुदाय पर टूट पडे़ ।तब अर्जुन ने अपने दिव्य एवं कभी जीर्ण न होने वाले विशाल धनुष गाण्डव को चढ़ाना आरम्भ किया और बड़े प्रयत्न से किसी तरह उसे चढ़ा दिया।। भयंकर मार-काट छिडने पर बड़ी कठिनाई से उन्होंने धनुष पर प्रत्यच्चा तो चढ़ा दी; परंतु जब वे अपने अस्त्र-शस्त्रों का चिन्तन करने लगे तब उन्हें उनकी याद बिल्कुल नहीं आयी । युद्ध के अवसर पर अपने बाहुबल में यह महान्विकार आया देख और महान दिव्यास्त्रों विस्मरण हुआ जान वे लज्जित हो गये । हाथी, घोड़े और रथ पर बैठकर युद्ध करने वाले समस्त वृष्णि सैनिक भी उन डाकुओं के हाथ में पड़े हुए अपने मनुष्यों को लौटा न सके ।उस समुदाय में स्त्रियों की संख्या बहुत थी; इसलिये डाकू कई ओर से धावा करने लगे तो भी अर्जुन उनकी रक्षा का यथासाध्य प्रयत्न करते रहे ।सब योद्धाओं के देखते-देखते वे डाकू उन सुन्दरी स्त्रियों को चारों ओर से खींच-खींचकर ले जाने लगे । दूसरी स्त्रियाँ उनके स्पर्श के भय से उनकी इच्छा के अनुसार चुपचाप उनके साथ चली गयीं ।तब कुन्तीकुमार अर्जुन उद्विग्न होकर सहस्त्रों वृष्णि सैनिकों को साथ ले गाण्डीव धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा उने लुटेरों के प्राण लेने लगे ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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