महाभारत मौसल पर्व अध्याय 8 श्लोक 1-15
अष्टम (8) अध्याय: मौसल पर्व
अर्जुन और व्यास जी की बातचीत
वैशम्पायन जी कहते हैं – राजन ! सत्यवादी व्यासजी के आश्रम में प्रवेश करके अजु्रन ने देखा कि सत्यवतीनन्दन मुनिवर व्यास एकान्त में बैठे हुए हैं ।महान व्रतधारी तथा धर्म के ज्ञाता व्यासजी के पास पहुँचकर ‘मैं अर्जुन हूँ ‘ ऐसा कहते हुए धनंजय ने उनके चरणों में प्रणाम किया । फिर वे उनके पास ही खड़े हो गये ।उस समय प्रसन्नचित्त हुए महामुनि सत्यवतीनन्दन व्यास ने अर्जुन से कहा – ‘बेटा ! तुम्हारा स्वागत है; आओ यहाँ बैठों ‘।अर्जुन का मन अशान्त था । वे बारंबार लंबी साँस खींच रहे थे । उनका चित्त खिन्न एवं विरम्त हो चुका था । उन्हें इस अवस्था में देखकर व्यास जी ने पूछा -। ‘पार्थ ! क्या तुमने नख, बाल अथवा अधोवस्त्र (धोती)- की कोर पड़ जाने से अशुद्ध हुए घड़े के जल से स्नान कर लिया है ? अथवा तुमने रजस्वला स्त्री से समागम या किसी ब्राह्मण का वध तो नहीं किया है ? । ‘कहीं तुम युद्ध में परास्त तो नहीं हो गये ? क्योंकि श्रीहीन-से दिखायी देते हो । भरतश्रेष्ठ ! तुम कभी पराजित हुए हो-यह मैं नहीं जानता; फिर तुम्हारी ऐसी दशा क्यों है ? पार्थ ! यदि मेरे सुनने योग्य हो तो अपनी इस मलिनता का कारण मुझे शीघ्र बताओ ‘।
अर्जुन ने कहा – भगवन ! जिनका सुन्दर विग्रह मेघ के समान श्याम था और जिनके नेत्र विशाल कमलदल के समान शोभा पाते थे वे श्रीमान भगवान कृष्ण बलरामजी के साथ देहत्याग करके अपने परम धाम को पधार गये ।देवताओं के भी देवता, अमृतस्वरूप श्रीकृष्ण के मधुर वचनों को सुनने, उनके श्रीअंगों का स्पर्श करने और उन्हें देखने का जो अमृत के समान सुख था, उसे बार-बार याद करके मैं अपनी सुध-बुध खो बैठता हूँ । ब्राह्मणों के शाप से मौसलयुद्ध में वृष्णिवंशी वीरों का विनाश हो गया । बड़े-बड़े वीरों का अन्त कर देने वाला वह रोमाञ्चकारी संग्राम प्रभासक्षेत्र में घटित हुआ था ।ब्रह्मन ! भोज, वृष्णि और अन्धकवंश के ये महामनस्वी शूरवीर सिंह के समान दर्पशाली और महान बलवान थे; परन्तु वे गृहयुद्ध में एक-दूसरे के द्वारा मार डाले गये ।जो गदा, परिघ और शक्तियों की मार सह सकते थे वे परिघ के समान सुदृढ बाहों वाले यदुवंशी एरका नामक तृणविशेष के द्वारा मारे गये – यह समय का उलट-फेर तो देखिये ।अपने बाहुबल से शोभा पाने वाले पाँलाख वीर आपस में ही लड़-भिड़कर मर मिटे ।उन अमित तेजस्वी वीरों के विनाश का दु:ख मुझसे किसी तरह सहा नहीं जाता । मैं बार-बार उस दुख से व्यथित हो जाता हूँ । यशस्वी श्रीकृष्ण और यदुवंशियों के परलोक-गमन की बात सोचकर तो मुझे ऐसा जान पड़ता है, मानो समुद्र सूख गया, पर्वत हिलने लगे, आकाश फट पड़ा और अग्नि के स्वभाव में शीतलता आ गयी। शाड़र्गधनुष धारण करने वाले श्रीकृष्ण भी मृत्यु के अधीन हुए होंगे – यह बात विश्वास के योग्य नहीं है । मैं इसे नहीं मानता ।फिर भी श्रीकृष्ण मुझे छोड़कर चले गये । मैं इस संसार में उनके बिना नहीं रहना चाहता । तपोधन ! इसके सिवा जो दूसरी घटना घटित हुई है वह इससे भी अधिक कष्टदायक है । आप इसे सुनिये ।
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