महाभारत वन पर्व अध्याय 102 श्लोक 20-26
द्वयधिकशततमो (102) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )
‘प्रभो! आप ही हमारे स्त्रष्टा और पालक हैं। आप ही सम्पूर्ण जगत् संहार करनेवाले हैं। इस स्थावर और जगंम सम्पूर्ण जगत् की सृष्टि आपने ही की है । ‘कमलनयन! पूर्वकाल में आपने ही वारहरूप धारण करके सम्पूर्ण जगत् के हित के लिये समुद्र के जल से इस खोयी हुई पृथ्वी का उद्धार किया था । ‘प्राचीनकाल में आपने ही नृसिंह शरीर धारण करके महानराक्रमी आदिदैत्य हिरण्यकशिपु का वध किया था । सम्पूर्ण प्राणियों के लिये अवध्य महादैत्य बलि को भी आपने ही वामनरुप धारण करके त्रिलोकी के राज्य से वंचित किया । ‘ऐसे-ऐसे आपके अनेक कर्म हैं, जिनकी कोई संख्या नहीं है। मधुसूदन! हम भयभीत देवताओं के एकमात्र आश्रय आप ही हैं । ‘देवदेवेश्वर! इसीलिये लोकहित के उद्देश्य से हम यह निवेदन कर रहेहैं किआप सम्पूर्ण जगत् के प्राणियों, देवताओं और इन्द्र की भी माहन् भय से रक्षा कीजिये ।
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