महाभारत वन पर्व अध्याय 125 श्लोक 17-26
पंचविंशत्यधिशततम (125) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )
युधिष्ठिर ! से देवताओं के अनेक प्रकार के मन्दिर दिखायी देते हैं, जो नाना प्रकार के है । यह चन्द्रतीर्थ है, जिसकी बहुत से ऋषिलोग उपासना करते है। यहां बालखिल्य नामक वैखानस महात्मा रहते है, जो वायु का आहार करने वाले और परम पावन है ।यहां तीन पवित्र शिखर और तीन झरने हैं । इन सबकी इच्छानुसार परिक्रमा करके स्नान करों । राजेन्द्र ! यहां राजा शान्तनु, शकुन और नर नारायण ये सभी नित्य धाम में गये हैं । युधिष्ठिर ! इस आर्चीक पर्वत पर नित्य निवास करते हुए महषिर्यों यहित जिन देवताओं और पितरों ने तपस्या की हैं, तुम उनकी सबकी पूजा करों । राजन ! यहां देवताओं और ऋषियों ने चरूभोजन किया था । इसके पास ही अक्षम प्रवाह वाली यमुना नदी है बहती है । यहीं भगवान कृष्ण ने भी तपस्या की है । शत्रुदमन ! नकुल, सहदेव, भीमसेन, द्रौपदी और हम सब लोग तुम्हारे साथ इसी स्थान पर चलेगें । पाण्डुनन्दन ! यह इन्द्र का पवित्र झरना है । नरेश्वर ! यह वहीं स्थान है, जहां धाता, विधाता और वरूण उर्ध्वलोक गये है । राजन ! वे क्षमाशाली और परम धर्मात्मा पुरूष यहीं रहते थे । सरल बुद्धि तथा सबके प्रति मैत्रीभाव रखने वाले सत्पुरूषों के लिये यह श्रेष्ट पर्वत शुभ आश्रय है । राजन ! यही वह महर्षिगण सेवित पुण्यमयी यमूना है, जिसके तट पर अनेक यज्ञ हो चुके है । यह पाप के भय को दूर भगाने वाली है। कुन्तीनन्दन ! यही महान धनुर्धर राजा मान्धाताने स्वयं यज्ञ किया था । दानिशिरोमणी महदेव कुमार सोमकेन ने भी इसी तट पर यज्ञानुष्ठान किया ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वन पर्व के अन्तर्गत तीथयात्रा पर्व लोमश तीर्थ यात्रा के प्रसंग में सुकन्योपाख्यान विषयक एक सौ पच्चीसवां अध्याय पूरा हुआ ।
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