महाभारत वन पर्व अध्याय 136 श्लोक 17-20
षटत्रिंशदधिकशततम (136) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )
महाभारत: वन पर्व: षटत्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-20 का हिन्दी अनुवाद
तब हाथ में शूल लिये उस भयानक राक्षस के खदेड़ने पर यवक्रीत अत्यनत भयभीत हो सहसा अपने पिता के अग्निहोत्र गृह मे घुसने लगा । राजन ! उस समय अग्निहोत्र के अंदर एक शूद्र जातीय रक्षक नियुक्त था, जिसकी दोनों आंखे अंधी थी । उसने दरवाजे के भीतर घुसते ही यवक्रीत को बलपूर्वक पकड़ लिया और यवक्रीत को वहीं खड़ा हो गया । शूद्र के द्वारा पकड़े गये यवक्रीत पर उस राक्षस ने शूल से प्रहार किया। इससे उसकी छाती फट गयी और वह प्राणशून्य होकर वहीं गिर पड़ा । इस प्रकार यवक्रीत को मारकर राक्षस रैभ्य के पास लौट आया और उनकी आज्ञा ले उस कृत्यास्वरूपा रमणी के साथ उनकी सेवा में रहने लगा ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत के वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रा पर्व में लोमशजी तीर्थ यात्रा के प्रसंग में यवक्रीतोपाख्यान विषयक एक सौ छत्तीसवां अध्याय पूरा हुआ ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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