महाभारत वन पर्व अध्याय 188 श्लोक 22-42

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अष्टाशीत्यधिकशततम (188) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)

महाभारत: वन पर्व: अष्टाशीत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 22-42 का हिन्दी अनुवाद

चार हजार दिव्य वर्षोंका एक सत्ययुग बताया गया हैं, उतने ही सौ वर्ष उसकी संध्या और संध्यांशके होते हैं ( इस प्रकार कुल अड़तालीस सौ दिव्य वर्ष सत्ययुगके हैं )। तीन हजार द्रिव्य वर्षोंका त्रेतायुग बताया जाता हैं, उसकी संध्या और संध्यांशके भी उतने ही ( तीन-तीन ) सौ दिव्य वर्ष होते हैं ( इस तरह यह युग छतीससौ दिव्य वर्षोंका होता है )। द्वापरका मान दो हजार दिव्य वर्ष है तथा उतने ही सौ दिव्य वर्ष उसकी संध्या और संध्यांवशके हैं ( अतः सब मिलकर चौबीस सौ दिव्य वर्ष द्वापरके हैं )। तदनन्तर एक हजार दिव्य वर्ष कलियुगका मान कहा गया हैं, सौ वर्ष उसकी संध्याके और सौ वर्ष संध्यांवशके बताये गये हैं ( इस प्रकार कलियुग बारह सौ दिव्य वर्षोंका होता है )। संध्या और संध्यांशका मान बराबर-बराबर ही समझो। कलियुगके क्षीण हो जानेपर पुनः सत्ययुगका आरम्भ होता हैं। इस तरह बारह हजार दिव्य वर्षोंकी एक चतुर्युगी बतायी गयी हैं। नरश्रेष्ठ! एक हजार चतुर्युग बीतनेपर ब्रह्माजीका एक दिन होता हैं। यह सारा जगत् ब्रह्माके दिनभर ही रहता हैं ( और इन दिन समाप्त होते ही नष्ट हो जाता हैं। ) इसीको विद्वान् पुरूष लोकोंका प्रलय मानते हैं। भरतश्रेष्ठ! सहस्त्र युगकी समाप्तिमें जब थोड़ा-सा ही समय शेष रह जाता हैं, उस समय कलियुगके अन्तिम भागमें प्रायः सभी मनुष्य मिथ्यावादी हो जाते हैं। पार्थ! उस समय यज्ञ, दान और व्रतके प्रतिनिधि कर्म चालू हो जाते हैं अर्थात् यज्ञ, दान, तप मुख्य विधिसे न होकर गौण विधिसे नाममात्र होने लगते हैं। युगकी समाप्तिके समय ब्राह्मण शूद्रोंके कर्म करते हैं और शूद्र वैश्योंकी भांति धनोपार्जन करने लगते हैं अथवा क्षत्रियोंके कर्मसे जीविका चलाने लगते हैं। ( सहस्त्र चतुर्युगके अन्तिम ) कलियुगके अन्तिम भागमें ब्राह्मण यज्ञ, स्वाध्याय, दण्ड़ और मृगचर्मका त्याग कर देंगे और ( भक्ष्याभक्ष्यका विचार छोड़कर ) सब कुछ खाने-पीनेवाले हो जायंगे। तात! ब्राह्मण तो जबसे दूर भागेंगे और शूद्र वैदिक मंत्रोंके जपमें संलग्न होंगे। नरेश्वर! इस प्रकार जब लोगोंके विचार और व्यवहार विपरीत हो जाते हैं, तब प्रलयका पूर्वरूप आरम्भ हो जाता है। उस समय इस पृथ्वीपर बहुत-से म्लेच्छ राजा राज्य करने लगते हैं। छलसे शासन करनेवाले, पापी और असत्यवादी आन्ध्र, शक, पुलिन्द, यवन, काम्बोज, बाहीक तथा शौर्यसम्पन्न आभीर इस देशके राजा होंगे। नरश्रेष्ठ! उस समय कोई ब्राह्मण अपने धर्मके अनुसार जीविका चलानेवाला न होगा। नरेश्वर! क्षत्रिय और वैश्य भी अपना-अपना धर्म छोड़कर दूसरे वर्णोंके कर्म करने लगेंगे। सबकी आयु कम होगी, सबके बल, वीर्य और पराक्रम घट जायंगे। मनुष्य नाटे कदके होंगे। उनकी शारीरिक शक्ति बहुत कम हो जायगी और उनकी बातोंमें सत्यका अंश बहुत कम होगा। बहुधा सारे जनपद जनशून्य होंगे। सम्पूर्ण दिशाएं पशुओं और सर्पोंसे भरी होंगी। युगान्तकाल उपस्थित होनेपर अधिकांश मनुष्य ( अनुभव न होते हुए भी ) वृथा ही ब्रह्माज्ञानकी बातें कहेंगे। शूद्र द्विजातियोंको भो ( ऐ ) कहकर पुकारेंगे और ब्राह्मणलोग शूद्रोंको आर्य अर्थात् आप कहकर सम्बोधन करेंगे। पुरूषसिंह राजन्! युगान्तरकालमें बहुतसे जीव-जन्तु उत्पन्न हो जायंगे। सब प्रकार के सुगन्धित पदार्थ नासिकाको उतने गन्धयुक्त नहीं प्रतीत होंगे। नरव्याघ्र! इसी प्रकार रसीले पदार्थ भी जैसे चाहिये वैसे स्वादिष्ट नहीं होंगे। राजन्! उस समयकी स्त्रियां नाटे कदकी और बहुत संतान ( बच्चा ) पैदा करनेवाली होंगी। उनमें शील और सदाचारका अभाव होगा। युगान्तरकालमें स्त्रियां मुखसे भगसम्बन्धी यानी व्यभिचारकी ही बातें करनेवाली होंगी। राजन्! युगान्तरकालमें हर देशके लोग अन्न बेचनेवाले होंगे। ब्राह्मण वेद बेचनेवाले तथा ( प्रायः ) स्त्रियां वेश्यावृतिको अपनानेवाली होंगी '।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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